(मंदिर बनने से पहले अपने मनमंदिर में राम को जगह देनी होगी. आजकल आमजन लोगो के विचारों में राम नहीं दिखते.)
चाहे वाल्मीकि के रामायण को पढ़िए या फिर तुलसीदास के रामचरितमानस को दोनों में राम एक देव नहीं है. वो एक सटीक विचारधारा के पक्षधर और नैतिकता से ओतप्रोत महामानव. वैसे मैने संस्कृत दसवीं तक ही पढ़ा है और संस्कृत की जितनी समझ रखता हूं,.उस हिसाब से रामायण आदिकाव्य के साथ ही अच्छी आदतों को अपनाने वाले जीवन को बयां करती है. राम दशरथ के अच्छे लड़के. भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण के बड़े भाई, एक आदर्श पुत्र, आदर्श राजा और आदर्श पति और पिता के रूप में प्रतिस्थापित है. रामायण एक रचना के साथ ही साथ बदलाव और परिस्थितियों में एक आदर्श फैसलें लेने का इशारा राम के जीवनवृत्त से सबक लेने का पाठ है.
विश्वामित्र जब किशोर राम को अपने अनुष्ठान और यज्ञों के संरक्षण के लिए दशरथ के पास आते हैं तो इसलिए नहीं आते हैं कि राम विष्णु के अवतार है और उनमें एक पारलौकिक शक्ति है बल्कि विश्वामित्र को ये पता था कि राम और लक्ष्मण बाल्यकाल से ही गुरू वशिष्ठ के सानिध्य में रहे हैं और इन्द्र समेत देवताओं के मित्र राजा दशरथ उनके पिता है.
आज जो समाज राम के तटस्थ है उसे राम के जीवन के उन तमाम फैसलों से सबक लेने के बाद उन परिस्थितियों में खुद के फैसलों और दुर्वृत्तियों के बारे में एक बार जरुर सोचना चाहिए.
विश्वामित्र के साथ जब किशोर राम अपने भाई लक्ष्मण मिथिला में प्रवेश करते है तो वे कभी नहीं कहते हैं कि हमें जनकपुर जाना है. आज्ञाशील होना, संस्कारवान होने का एक स्टेप है. संस्कार और लिहाज हमें आचरणशील बनातें है, आचरणशील होकर ही कोई व्यक्तित्व चरित्रवान कहा जा सकता है.
आज के प्रेम संवाद और राम के प्रेम-संवाद में बस इतना अंतर है कि राम के प्रेम-संवाद को सार्वजनिक किया जा सकता है क्योंकि उसमें लोक की भी चर्चाए मिलती हैं वहीं आज के प्रेम संवाद में केवल स्वार्थ और द्वेष की दीवार बनती दिखाई दे रही है.
मसलन, राम ने इस चरित्र में खुद को मर्यादा में पलने या रहने वाले एक पुरुष के रूप में दिखाया है जो जनकपुर के बगीचे में सीता को देखकर खुद की सुधि भूल जाता है.
मंदिर तो बन जायेगा, मगर मंदिर में राम को प्रतिष्ठा देना आसान काम नहीं है. अपने मनमंदिर में राम को बैठाने की जरुरत है.
पितृधर्म निभाने वाले राम पिता के वचन के लिए घर बार छोड़ वनवास चले जाते हैं. भाई भरत को अयोध्या का राजपाठ दे देते है. आज की स्थिति क्या है आज भाई लोभी और अवसरवादी हो रहे हैं. वो थोड़े से धन के लिए भाई को भी मार दे रहे है. अगर राम आपके भीतर रमें होते तो मानवता कभी भी शर्मसार ना होती.
वनवास में रहने वाले राम अपने दैनिक चर्या को कभी नहीं बदलते है. वो भोर में उठना नहीं छोड़ते है और प्राणायाम, सूर्य नमस्कार करना नहीं छोड़ते है. आज हम घर भूल जाते हैं, माता-पिता को भूल जाते है. अगर नहीं भूलते तो आज इतने वृद्धाश्रम अस्तित्व में नहीं होते.
दयानंद सरस्वती ने नवजागरणकाल में कहा था कि वेदों की ओर लौटो, इसका भी एक बड़ा कारण है. मै कहता हूं वेद तो थोड़ा क्लिष्ट है आप उपनिषदों की ओर लौटों,. उपनिषद भी समझ नहीं आता है तो गीता का अध्ययन करो. गीता भी समझ ना आये तो कुराने शरीफ की ओर लौटो, बुद्ध या फिर महावीर को ही अपना लो. मगर धर्म की इस धारिता में दिमागी खुरापात को मत भुनाओ. अगर मजहब की सही समझ होती तो जाकिर नाइक को इतनी तादाद में लोग नहीं पढ़ते और सुनते. आप तारिक फतेह को क्यों नहीं अपना लेते.
एक गिलास का धर्म होता है गिलास भर पानी धारण करना. जो आपको उचित लगे उसे अपनाये, अनुचित कभी भी ना अपनाये. उचित, अनुचित का खयाल रखना भी एक नैतिक धर्म या जिम्मेदारी है.
राम एक नारीवादी विचारक भी थे. नारीवाद की समझ के लिए आज हम जाॅन स्टुअर्ट मिल को पढ़ते है. राम एक पत्नीव्रत का पालन करने वाले पति है. राम सीता के अपहरणकर्ता का वंशनाश कर देते है. राम सीता को अपने सिंहासन पर बिठाते है इसका मतलब महिलाओं को त्रेतायुग में भी राजकाल में हिस्सा लेने पर जोर देते है.
राम एक राजव्यवस्था बनाते है जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के द्वारा शोषित ना हो.
रामराज्य आज भी प्रासंगिक है.
हमें इस 21वीं सदीं में रामपताका लगाने की कम जरुरत और राम जैसे प्रबल विचार रखने की नितांत आवश्यकता है.
एवमस्तु …..,,,,,
– अभिजीत पाठक