एक सभ्यता जिसकी शुरूआत कब हुई, कोई नहीं जानता. सनातन के अच्छे जानकार इसे अजन्मा और अनादिकाल से चली आ रही विचार आंदोलन का नाम देते है. इसका मतलब ये ना तो बौद्ध और जैन की तरह पंच महाव्रतों के अनुशीलन और संरक्षण का मोहताज रहा और ना ही सिख, इस्लाम और यहूदी की तरह सनातन के अच्छे विचारों को सहेजने और कुछ मनमर्जियो को जोड़कर एक नया धर्मरूप बनाने का वैचारिक असंतोष ही है.
सिन्धवी से बना हिन्द जब अपने स्वरुप को भूलने की कोशिश करने लगे तो जरूरी है कि पहले हिन्द, हिन्दू, हिन्दुस्तान और हिन्दुत्व की समझ सही और असमंजस खत्म कर लिया जाए.
एक ऐसा पंथ जो कभी बनाया ही नहीं गया वो संगठित कैसे हो सकता है. अनादिकाल से जिसमें अच्छे और प्रमस्तिष्क आते गए और पारंपरिक सोच का बुरा हाल करते रहे उन्होनें एकता में घुसपैठ का पैंतरा कभी नहीं खेला होगा.
चाहे दुनिया के सबसे बड़ा महाकाव्य महाभारत लिखने वाले वेदव्यास रहे हो या फिर आदिगुरू शंकराचार्य. योगगुरू पतंजलि रहे हो या फिर शल्यचिकित्सा के प्रणेता चरक. विमान की अवधारणा देने वाले ऋषि भारद्वाज रहे हो या परमाणु के चिंतक कणाद. चाहे शास्त्रवेत्ता याज्ञवल्क्य रहे हो या व्याकरणशास्त्र अष्टाध्यायी के लेखक पाणिनी. दुनिया में आदिकवि कहे जाने वाले वाल्मिकी रहे हो या फिर महाकवि कालिदास.
इन सबने अपने-अपने क्षेत्र में व्यापक स्तर पर काम किया. कामसूत्र लिखने वाले वात्स्यायन और शून्य और दशमलव देने वाले बिहारी गणितज्ञ आर्यभट्ट कभी संगठन की प्राथमिकता पर जोर नहीं दिए थे.
आज से लाखों साल पहले जब कोई धर्म स्थापित नहीं था उस समय भी हिन्दू धर्म का एक समय रहा था जिसे वैदिक काल कहा जाता था. जिस समय ऋग्वेद लिखा गया उस समयान्तराल को ऋग्वैदिक काल और जिस समयान्तराल में यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद लिखा गया था उसे उत्तरवैदिक काल कहा जाता है.
जीन और डीएनए की बात जिन्हें समझ में आती है वो पहले भारत के नामकरण को ही ठीक तरीके से समझ ले. जिस दुष्यंत के बेटे भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत रखा गया था, वो कालिदास के नाटक शाकुन्तलम् के मुख्य पात्र है. कालिदास का ये नाटक वास्तविक ऐतिहासिक विवरण है. शकुन्तला दुष्यंत की पत्नी थी और इसी के साथ शकुन्तला उस विश्वामित्र की बेटी थी, जिन्होंने एक समय में भगवान राम को भी धनुर्विद्या की शिक्षा प्रदान किया था. मेनका स्वर्ग की अप्सरा थी और इन्द्र ने उसे धरती पर विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के उद्देश्य से भेजा था. विश्वामित्र की तपस्या भंग करने का मकसद भूलकर मेनका महर्षि विश्वामित्र पर फिदा हो जाती है. अप्सरा और एक हिन्दूवादी महर्षि के इस प्रणय से भारत के नामकरण के लिए जिम्मेदार भरत की माँ शकुन्तला का जन्म होता है.
भरत बचपन से ही बहुत हिम्मतवर हुआ करते थे. एक बार वो सिंहनी के बच्चों का दांत गिन रहे थे. इस दृश्य ने वीर बालक भरत के नाम को उद्धृत कर इस देश को भारत बना दिया.
भारत की इस धरती पर जितने भी धर्म बाद में बने, वो पहले सनातनी ही थे. क्षत्रिय सिद्धार्थ ही गौतम बुद्ध बने थे. बौद्ध सनातन से ही निकला हुआ एक धर्म है. पारंपरिक रूप से देखा जाय तो बौद्ध सनातन जैसा ही है. इसी प्रकार सनातन का वैश्य तबका जैन धर्म का सूत्रपात करता है. जिसके चौंबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी थे.
बौद्ध ने अपने भिक्षुओं के जरिए देश देशांतर में बौद्ध का प्रचार प्रसार करवाया था. जैन ने भी लोगो के बीच जा जाकर आर्गनाइज होने की बात की थी. तुर्क आक्रमण और सल्तनत का विस्तार इस्लाम प्रचार को दिखाता है. गुरू परंपरा वाला सिख धर्म ने भी अपने आपको व्यापक करने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम किया था.
केवल एक हिंदुत्व ही था जिसने ऐसे किसी भी तरह के प्रयास नहीं किए और विस्तार की चाहत सपने में भी नहीं रखा.
धर्म मतांतर का सम्मिश्रण होना चाहिए. इसका मतलब अगर पहले से बेहतर विचार आज उपलब्ध हो रहे हो तो प्रथावादी विचार को जड़ से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए. लेकिन तब तक आपको रूकने की जरुरत है जब तक आपके पास उस पुरानी नीति से बेहतर कुछ नया और आज के लिहाज से फिट मिल ना जाये.
देश किस गर्त की तरफ तेजी से भागने की कोशिश कर रहा है, वो आजकल टीवी, अखबार और डीजिटल प्लेटफार्म पर देखा, सुना और पढ़ा जा रहा है.
आज का ये दौर हिंदुत्व का प्रचार करने की कोशिश कर रहा है जो सनातन के लिए किसी संक्रमण से कम नहीं. आइए हिन्दू होने पर गर्व करते हुए. हिंदुत्व और हिंदुस्तान की भलाई के लिए प्रतिज्ञा करें कि हम तमाम मजहबों को एक भटके राहगीर की तरह ही अपने से अलग होने की भूल कभी नहीं करेंगे. सारे धर्म हिन्दुस्तानी परंपरा के है, सनातनी कभी भी अपने प्रचार और व्यापकता के लिए कटते मरते नहीं है.
-अभिजीत पाठक ‘ओजस’