प्रशांतभूषण और उनके पार्टी के प्रवक्ता अगर कृष्ण की तुलना रोमियो से कर रहे है तो निहायत गलत बात है. रोमियो कोई नहीं था. शेक्सपियर के नाटक का एक काल्पनिक चरित्र है रोमियो.
कृष्ण वैष्णव सम्प्रदाय के ईश्वर है. जिस गीता पर हाथ रखने के बाद भारत के हर व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वो झूठ नहीं बोलेगा, उस गीता में कृष्ण ने ही अर्जुन को कर्मोपदेश दिया है. अगर कृष्ण पर ऐसी दोयम दर्जे की टिप्पणियाँ भारत में हो रही है तो ये बहुत ही शर्मनाक बात है. ये आजकल के अल्पज्ञ प्रवक्ता दो दिन की बनी पार्टियों का पक्ष लेने के लिए इतने नीचे गिर जायेंगे, और कृष्ण के बारे में इतनी ओछी टिप्पणी कर देंगे; इनसे और क्या उम्मीद की जा सकती है.
जगतगुरू श्रीकृष्ण ने गीता को अर्जुन को सुनाया था. गीता भारतीय गणराज्य की संवैधानिक धर्मग्रंथ है. आप वकील है. स्वराज्य नाम से पार्टी बना लेने से और कुछ लोगो की हमदर्दी मिल जाने से आप कृष्ण की तुलना रोमियो से करने लगे. कौन था रोमियो. अगर आपको कृष्ण को समझना है तो गीता खरीदिए विराटरूप ईश्वर के दर्शन तो आपको नहीं होने वाले, मगर विराट ईश्वर की समझ तो विकसित हो ही जायेगी. आपने एक कुत्सित प्रयास किया है. भारत में आपसे बड़े-बड़े विचारक रहते हैं मगर कृष्ण पर इतनी ओछी टिप्पणी करने की साहस मेरी जानकारी में किसी ने भी नहीं किया.
भागवत् का पहला श्लोक पढ़िए, हो सकता है वेदव्यास के इस श्लोक को पढ़ने से आपके द्वारा किए गए अनर्गल बात पर उस सत्ता को थोड़ी दया आ ही जाये. हमारे ईश्वर बहुत ही कृपालु है. आपके नाम पर तो बाकायदा केस होना चाहिए. आपने गीता के मुख्य पात्र पर एक लेखक शेक्सपियर का पक्ष लेते हुए दुस्साहसपूर्ण बात कहा है.
श्रीसच्चिदानंदरूपाय,
विश्वोत्पत्यादिहेतवे.
तापत्रयनविनाशाय,
श्रीकृष्णाय वयं नुम:.
कृष्ण वो आदिपुरूष है जिन्होंने अपने जीवनपर्यंत लोगो के हित में काम किया था. विश्व की उत्पत्ति और विनाश उनके हाथ में है. जो आधिक, दैहिक और दैविक तीनों तापों का विनाश करते है. ऐसे कृष्ण को प्रणाम करता हूं.
आपके प्रवक्ता अनुपम जी ने तो हद ही पार कर दिया. शेक्सपियर सदीं भर के युग परिवर्तक हो सकते है. मगर श्रीकृष्ण द्वापर के युगपुरूष है. आपने उनके नाम के पहले एंटी शब्द लगाने का साहस कैसे किया.
आज मै भी अपने आपको रोकना नहीं चाहता. इसलिए क्योंकि सहने की भी एक सीमा होती है. कबीर ज्ञानमार्गी शाखा और निर्गुण को मानते थे. सूर और तुलसी भक्तिकाल के सगुण भक्ति शाखा के कवि थे. इसके बाद भी कबीर ने एंटी कृष्ण नहीं लिखा था. हमारे यहाँ के लेखकों ने भी काल्पनिक चरित्रों का प्रयोग किया है मगर हम उन काल्पनिक चरित्रों का फेवर लेने के लिए यीशु को थोड़े ना कुछ कह देंगे.
संस्कृत का एक ये श्लोक याद रख लेना चाहिए;
विनाशकाले विपरीत बुद्धि
(जब विनाश का समय नजदीक आता है तो बुद्धि काम करना बंद कर देती है.)