दुनियाभर में कमजोर रोजगार या अनिश्चित रोजगार का बढ़ना बहुत बड़े संकट के रूप में देखा जा रहा है. एक आंकड़े की माने तो 7 अरब के इस विश्व में 1.5 अरब लोग बेरोजगारी के दंश को झेल रहे है. रोजगार सृजन के नाम पर एक भ्रामक स्थिति पैदा की जाती है. पूरे ग्लोब पर रोजगार सुनिश्चित कर सकने वाला कोई देश नहीं ढूंढा जा सकता है.
ये लचर हालात हर तरफ देखी जा सकती है. रोजगार में लगे कुल व्यक्तियों की संख्या 46 फीसदी यानी लोग बोरिया-बिस्तर बांधकर अपने परिवार के सदस्यों के साथ काम की तलाश में पलायन के लिए भी मजबूर होते है. ये एक विदारक स्थिति जिसकी जड़ में कहीं ना कहीं क्षेत्रवादिता ही है.
दुनिया के किसी देश में हर जिला या हर प्रदेश या हर नगर समान नहीं हुए, इसका मतलब कुछ ही नगरो में बहुत से नगरो की अपेक्षा विकास कार्यक्रम हुए, औद्योगीकरण और शहरीकरण हुआ. स्मार्ट सिटी कन्सेप्ट आए और इसी के साथ बहुत से नगरो को अर्थव्यवस्था से सीधे तौर पर जोड़ा नहीं गया. असमानता के इस दुरूह स्थिति के निपटारे की बात सभी नेताओं और पार्टियों की तरफ से आता है. मगर जमीनी स्तर पर जो हुआ है वो दिख रहा है.
श्रम करने के बाद भी कुछ लोगो के पेट नहीं भर पा रहे है. बाल मजदूर हर जगह है, चाहे वो चाय की दुकान हो, यहां तक की कुछ विनिर्माण क्षेत्र में भी 14 साल से कम उम्र के बच्चे दिखाई देते है.
दक्षिण एशिया के देशों में तो अनिश्चित रोजगार की स्थिति और विकराल है, वहाँ पर 70 फीसदी से भी ज्यादा श्रमिको को रोजगार की गारंटी नहीं मिलती है. आजादी के बाद भी अगर कोई मुल्क इन चुनौतियों को खत्म नहीं कर पाता है तो उसे विकास पर ऐंठने का कोई हक नहीं दिया जाना चाहिए.
अब आते हैं भारत में बेरोजगारों की स्थितियों को समझने और सोचने के लिए. 1.3 अरब की आबादी वाला कोई देश, जोकि दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा है. यहां पर 70 फीसदी लोग गांव में रहते है. यानी की अभी तक 30 फीसदी लोग ही स्मार्ट या फिर मेट्रो सिटी में रहने वाले है, जबकि ये 30 फीसदी भी कहना अनुचित होगा क्योंकि अभी तक ज्यादातर शहर मेट्रो सिटी और स्मार्ट सिटी की बुनियादी जरुरतों से दूर रखे गए है.
तमाम योजनाओं का खाका शहरीकरण में विलुप्त हो जाता है और गांव में खड़ंजे और नालियां भी नहीं बन पाती है. इसका मतलब ये हुआ कि सरकारें भारत में पूंजीपतियों के राजनीतिक चंदों के प्रभाव में काम करती है. गांवों और किसानों का मन रखने के लिए एकाध योजनायें गांवों को रिझाने के लिए दे दिए जाते है. चलिए देखते है गांवों की स्थितियां कब सुधरती है.
आज जीत की रात पहरूए सावधान रहना.
_अभिजीत पाठक