देश की मनोदशा जब बस नौकरी पाने और बेरोजगारी की मनसा को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे,.तो उस समय सरकारें स्किल इंडिया के झांसे को विज्ञापित क्यों नहीं करेंगी!
दरअसल, जिस स्किल इंडिया के लिए लोग कतार बनाने के लिए लाइनों में लगे है, वो आपके दिमाग पर ताला जड़ने जैसा ही है.
जब किसी देश में उच्च शिक्षा के बजट में कटौती की जा रही हो. रिसर्च को प्रोत्साहन देना तो दूर, सरकारी विश्वविद्यालयों में इनकी संख्या घटाने की कवायद हो रही हो. पिछले एक दशक में देश में साक्षरता दर जरुर बढ़ी है मगर उस साक्षरता दर को बढ़ाने में सरकार के उपक्रमों का कोई हाथ नहीं है. हर स्तर के निजी विद्यालय बेतहाशा खोले गए है. जिस देश में शिक्षा व्यवस्था के नाम पर केवल खिचड़िया पक रही हो, और बच्चे स्कूल से उसके बाद भी नदारद हो तो इस तरह सोचा जाना चाहिए कि इसमें अभिभावकों की कोई गलती नहीं है. आजकल सभी वर्ग इतना तो जागरूक हो ही गये है कि चाहे उसे मजदूरी करके ही सही, पर अपने बच्चे के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना तो करना ही है.
प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के भी बच्चे अब निजी स्कूलों में जा रहे है. बदलाव की उम्मीद और उम्मीदवार सरकार और सरकारी उपक्रमों पर भरोसा करने के लिए आखिर क्यों बाध्य हो? इसलिए निजी विद्यालयों में अधिकाधिक संख्या में विद्यार्थी दिखाई देते है.
जिस देश में रोजगार सृजन पहले की तुलना में घट रहा हो, वहां स्किल इंडिया को भुनाया जाना चाहिए. शिक्षा का मकसद ये नहीं होता कि एक विद्यार्थी किसी एक स्किल पर ही काम करे. उसे बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनाने के लिए शिक्षित किया जाता है. वहीं स्किल इंडिया उस बहुआयामी व्यक्ति को एक ढांचे में कसकर उसे दिमागी रूप से एकात्मक बनाने की कवायद है.
सही भी है जिस देश के बी. टेक और एम. बी. ए भी चपरासी का फार्म सब्मिट करने के लिए कतार बना चुके हो वे अगर स्किल इंडिया में खडे़ है तो ये बड़ी बात भी है.
भारत के युवा सरकारों को थोड़ा नजदीक से जानने की कोशिश जरुर करे. जो उन्हें मानसिक रूप से कमजोर कर कारीगर बनाने के लिए स्किल इंडिया की दुहाई दे रहे है.
शिक्षा का व्यापीकरण अगर इसी तरह से स्किल की तरफ देखने की कोशिश करेगा तो एक समय ऐसा भी आ सकता है जब कारीगर शिक्षा को कारीगरी की तरफ खींच लेगी और शिक्षा आत्मनिर्भरता खो देगी.
अभिजीत पाठक (विश्लेषक)