इस देश में जब पढे़ लिखे लोग धर्मांध हो जाते हैं तो ऐसा लगता है कि प्रगतिशील चेतना का विकास इस जमीं को गुलजार नहीं कर पाया.
मै ऐसे धर्म की पैरोकारी नहीं कर सकता जिसमें तकलीफ देने वाले मजहबी कहलाने का लाइसेंस बनवा लिए हो.
एक मंदिर का महंत किसी दलित को मंदिर में जाने से जिस समय रोकता है वो अपराधी हो जाता है, क्योंकि रोम-रोम में रमने वाले ईश्वर किसी के साफ दिल को देखते है. उन्हें सबरी का जूठा बेर भाने लगता है. उस सत्ता को निषाद की दोस्ती, भील गुह का साथ स्वीकार है.
किसी मस्जिद में अगर महिलाओं को अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है तो मस्जिद एक सराय के समान है जहां सुप्रीम पावर और पुरुषों की जमात का करार हो चुका है.
#ओजसमंत्र