(बदलाव की उम्मीद के साथ)
युवाओं को बुजुर्गो से राजनीति छीन लेनी चाहिए. युवा भारत का बूढ़ा लोकतन्त्र नैतिक निर्णय लेने में भी कतरा रहा है. हमें देश के रणबांकुरों के खून से लोकतन्त्र के छलावे का अभिषेक करने से बचना होगा. हमारी संवेदनशीलता कहां मर गई है. कितना इंतज़ार करे कोई.
ये देश किसी एक का नहीं है. भारत के लोग इसके पुनर्निर्माण के लिए आगे आए.
अगर आप शिक्षक है तो किताब को देशज समस्याओं से जूझ सकने और उन पारंपरिक सोच को खत्म करने वाले फौलादी, वैचारिक और हिम्मतवर छात्रों का हथियार बना दें.
अगर आप लेखक हैं तो लिखिए कि इस देश में अलग-थलग लोग एकता की बात करते है. राजनेता हमें मजहब के नाम पर कटवाते मरवाते हैं. दोयम दर्जे की राजनीति हो रही है. देश के पुनर्निर्माण में सबको आगे आना होगा.
अगर आप इंजीनियर है तो ऐसे पुल का निर्माण करवाइएगा, जिस पर से जब असंख्य जनांदोलनकर्ता गुजरे तो पुल विदीर्ण ना हो जाये. मजबूती ना खो दे.
अगर आप सच्चे राजनीतिज्ञ है तो बुरे समय में अपनी लीक को मत छोड़िए. आप पर भरोसा करना ज्यादातर लोग भले ना छोड़े, लेकिन कुछ अच्छे लोग आपकी फेहरिस्त को समझ ही जाएंगे.
और अगर आप युवा है तो घरबार छोड़ने का माद्दा रखिए, गुलामी की इस सूरत को, असहायों और बेबसों, बेरोजगारों, लाचारों को अवसर दीजिए बेहतरी के लिए; बदलाव के लिए.
#ओजसमंत्र