दुनिया में दो तरह के लोग हैं. एक डरने वाले और दूसरा डराते रहने वाले. एशिया के दो दिग्गज आंदोलनकारी महात्मा गाँधी और नेल्सन मंडेला भयरहित समाज की परिकल्पना करने वाले दार्शनिक थे. वे चाहते थे कि एक आदर्श समाज में कोई किसी से ना डरे और कोई इतना निडर ना हो जाए कि वो दूसरों को डराने लगे.
मानव विज्ञानियों ने गाँधी और मंडेला को एक साथ झूठा करार कर दिया. मानव विज्ञान की मानें तो इंसान के भीतर 3 तरह की विशेषता अनिवार्य रूप से होती ही है.
1- Phobia
2- Philia
3- Mania
किसी का डर, किसी से प्रेम और किसी चीज में दिलचस्पी. आज के समाज में एक विशेष तबके को दूसरे तबके से असुरक्षा महसूस होती है.
एक धर्म को दूसरे धर्म से डर लगता है.
गरीब को अमीर से डर लगता है. मजदूर को काॅर्पोरेट से, इंसानियत को आतंकवाद से असुरक्षा महसूस करना पड़ता है. पुरूषवादी समाज महिलाओं को डरा कर रखना चाहता है.
रैमसनवेयर संचार को डरा देता है. सुरक्षा की गारंटी लेने वाले अपने आंदोलन में निष्क्रिय होने लगते हैं. एक ताकतवर प्रधानमंत्री पाकिस्तान के अतिशय को कैसे बर्दाश्त करता है, पूरा भारत कैसे ना डरे जब गृह मंत्रालय की वेबसाइट ही हैक हो जाती है.
ये परिकल्पना और गाँधी के भयरहित भारत का सपना कहीं अधूरा ना रह जाए.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)
दिल नाउम्मीद तो नहीं,
नाकाम ही तो है.
लंबी है गम की शाम,
मगर शाम ही तो है. – फैज