महाभारत काल में जब दिल्ली का उल्लेख आया तो ये इन्द्रप्रस्थ के नाम से, वेदव्यास की कलम से और पहले साहित्यिक साक्ष्य पर इतराने लगी. तोमर वंश के शासको ने इसे बसाया और व्यापक बनाया. ये बात 11वीं शताब्दी की है. तोमर राजपूत शासक थे. 11वीं शताब्दी से लेकर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक ये हिन्दुस्तानी शहंशाहों और शासकों को राजस्व देकर अमीर बनाती रही. आमजन को दो जून की रोटियों से ज्यादा की इच्छा नहीं रखनी होती थी. लोग राजतंत्र के एहसानों के नीचे दबे कुचले पड़े रहते थे. कोई कुछ बोलता नहीं था.
हालात और दौर 1857 के बाद और बदल गए. दिल्ली पर साम्राज्यवादी अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया. मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर सत्ता से अपदस्थ कर दिए गए. अंग्रेजियत का दौर आया.
1911 में ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे अपनी राजधानी बना दिया. कोलकाता इससे पहले साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी.
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो दिल्ली को ही राजधानी बनाया गया. भारत संघ(Union of India) की राजधानी ये आज भी है लेकिन अपने विरासत, नदियों और पर्यावरण को हाशिए पर रखकर.
1956 में इसे केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया. 1991 में संविधान में संसोधन कर इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा गया.
ये एक घटनाचक्र मान लीजिए.
अब एक समझ इसकी भौगोलिक स्थितियों का करते हैं. 1483 वर्ग किमी में दिल्ली फैली है. तीन तरफ से हरियाणा और पूरब में यूपी से इसकी सीमाएं लगती है. सामान्य तौर पर इसे दो भागों में बांटा जा सकता है. दिल्ली पहाड़ी और यमुना का समतल मैदान.
कम जगह में ज्यादा लोगों को पनाह देने वाली दिल्ली का जनघनत्व सर्वाधिक है. 1 करोड़ 70 लाख लोग यहां रहते है. विविधता को ना देखा जाए तो ये दिल्ली के लोग और भारत के निवासी हैं. यहां सबसे ज्यादा हिन्दी, उसके बाद पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी बोली जाती हैं.
ये सिर्फ प्रस्तावना है आगे मै ये बताने की कोशिश करूंगा कि दिल्ली और यमुना का छद्मयुद्ध कहीं जनजीवन को खतरे में ना डाल दे.
#ओजस