शिक्षक अपने आप में एक व्यवस्था होते हैं. वो शिक्षा को आधुनिक नहीं बल्कि अपने व्यावहारिक मनोदशा के रटे रटाए बिंदुओं पर कभी सोचते नहीं है और जेनेटिक्स की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते रहते हैं.
10 साल पहले कोई आधुनिक और प्रैक्टिकल व्यक्तित्व पत्रकारिता के हिन्दी भाषी कठिनाई को समझ गया होगा और उसे लगा होगा कि पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थी साहित्यिक हिन्दी में बातचीत कर रहे हैं. इनकी भाषा सरल होनी चाहिए. लेकिन स्थिति ऐसी थी कि उन धुरंधरो को सामान्य हिंदी के 10 से 50 शब्द भी आते नहीं थे.
काॅपी में अगर आपने द्वारा भी लिख दिया तो एक विवेचक आपसे कहने लगेंगे कि अरे भाई आॅनलाइन में द्वारा का प्रयोग नहीं होता. मुझे तो नहीं लगता कि द्वारा का मतलब भी भारतीय जनमानस नहीं समझता होगा.
हम अंग्रेज़ी में पूरे अंग्रेज बन जाते है. अंग्रेज़ी की काॅपी जब लिखी जाती है तो उसमें बताया जाता है कि आपका syntax, synthesis और transformation सही होने के साथ ही साथ कुछ अच्छे phrases उपयोग में लाए जाए तो ज्यादा बेहतर काॅपी लिखी जा सकती है.
चलिए हम हिन्दी को आसान बनाने के लिए हिंदी के स्वरूप के साथ आघात कर रहे हैं, क्या यही काम आप अंग्रेज़ी में कर दिखाने का माद्दा रख पाएंगे. जिनको कम अंग्रेज़ी समझ में आती है उनके हिसाब की आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग आप अंग्रेज़ी में किजिए. अंग्रेज़ी के सरलीकरण के लिए हिंदी को जीवंत करके दिखाइए. इससे पहले आप हिंदी को मारकर उसमें विदेशी भाषा में घसीटने का जहमत ले रहे थें ना! ऐसा करने में कतरा क्यों रहे हैं आप!
– अभिजीत पाठक (बदलाव की उम्मीद के साथ)