सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि पिछली सरकार के पूरे कार्यकाल में विधानसभा सचिवालय में नियुक्तियों में जो धांधली की गई, उसकी जांच होगी. अवैध नियुक्तियों को रद्द करने का आश्वासन उन्होनें एक इंटरव्यू में दिया और कहा कि दोषी पाए जाने पर उचित कार्रवाई भी होगी.
उधर, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप शाही और दयाशंकर त्रिपाठी ने 18 मई 2017 को एक फैसला सुनाया. फैसला था कि यूपी सरकार विधानसभा सचिवालय में नियुक्तियों को लेकर धांधली की शिकायतों की जांच करेगी. सीएम के बयान और कोर्ट के फैसले में मकसद साफ है कि धांधली को जड़ से समाप्त करने के लिए मौजूदा सरकार बड़ी गंभीरता से काम करना चाहती है.
मगर तस्वीर समझकर आप भौंचक्के रह जाएंगे.
दरअसल, विधानसभा सचिवालय के प्रमुख सचिव प्रदीप दूबे ने नियुक्तियों में धांधली की जांच शुरू कर दी. प्रदीप दूबे ने मौका ही नहीं दिया कि राज्य सरकार इस मामले में अपने स्तर से जांच शुरू करे, जबकि हाईकोर्ट ने साफ-साफ कहा था कि राज्य सरकार अपने स्तर पर जांच कराए.
समाजवादी शासनकाल के विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और विधानसभा सचिवालय के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे ने ही मिल कर सैकड़ों अवैध नियुक्तियां कीं. इस बारे में सरकार, राज्यपाल से लेकर विभिन्न अदालतों तक शिकायतें गईं.
जिस सचिव की निगरानी में नियुक्तियों में धांधली हुई, वहीं उसकी जांच कर रहा है. हाईकोर्ट का फैसला, बीजेपी सरकार की नीयत और मैले हाथों से सफाई की ये नैतिकता सदियों से चली आ रही है. सरकारे बदलती है. आमजन को उल्लू समझने का सिलसिला पारंपरिक ही होता है.
– अभिजीत पाठक ‘ओजस’