अब अमित शाह बनियागिरी की समझ में विशेषण चतुर जोड़ने लायक हो ही गए हैं. सोचा कि कल ही कुछ लिखूं लेकिन कुछ कारणवश लिख नहीं पाया. चालाक बनिया होने का सामाजिक अर्थ ये है कि ‘किसी बेबस और लाचार की परिस्थितियों का फायदा उठाना’. मै बनिया जाति विशेष पर तंज नहीं कस रहा बल्कि बनियागिरी को लोग बेईमानी की तरह समझते है.
एक लोकोक्ति भी बड़ी प्रचलित है कि बनिया के बेटे को कोई ना सीखाए कि पैसे को कहाँ और कब दबाया जाता है.
ये दौर अमित शाह का हो सकता है. मोदी का हो सकता है, लेकिन आगे रहेगा कि नहीं ये कोई नहीं जानता और गाँधी का दौर कभी समाप्त होने वाला नहीं. एक प्रधानमंत्री अपने मरने के बाद ज्यादा से ज्यादा सौ सालों तक याद रखा जाता है. एक महात्मा लाखों करोड़ो सालों तक.
आदरणीय शाह जी अगर वो बनिया और चालाक बनिया होता तो ये दिन शायद आए ही नहीं होते. उसको तो तुम लोगो ने धोखा दे दिया. यार भाई राहुल गाँधी से सीधा महात्मा गाँधी की आलोचना करने लग गए. अपने दायरों को सुनिश्चित किजिए महाशय. बापू पर कमेंट करने से पहले सौ बार अपना चेहरा शीशे में जरुर देखना. आपको बनिया और शिकारी दोनों दिखेंगे.
सत्ता का इतना गुमान हो गया कि बापू का परिहास करने का साहस जुटा ले रहे हो. मै ऐसी पार्टी और व्यक्तित्व के खिलाफ हूं. बीजेपी को खुद का आत्ममंथन करने की जरुरत है.