आदमी जीता है. जीते रहने की नहीं सोचता. कुछ लोग नहीं मरते हैं, वे जो विचारशील होते हैं. प्रेम की डोरी को तोड़ते नहीं है, वो जो संबंधों की ताजदारी करते हैं.
जब दुनिया बन रही थी. उस समय भी बहुत सारे लोग कार्य के मनोरथ को लिए अमर बन गए. राम की अमरता को सीता ने तय किया, राधिका और कृष्ण तो अमरत्व के परिचायक हैं. संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि ने राम के चरित्र से प्रेम कर लिया. कालिदास का जीवन प्रेम की अंत्येष्टि का सबक था लेकिन सृजन का जीवन किसी प्रेम से कम नहीं होता. कबीर भी तो नहीं मरे. हमें आज भी सुनाते रहते हैं साखी, सबद और रमैनी.
तो मरा कौन?
मर वो गए जो जीते जी ही जीने की परिकल्पना करते रहे. हमेशा जीते रहने के लिए जरूरी होता है. सृजन, प्रेम का आदर्श, जीवन की कर्मण्यता. आप भी अमर हो सकते हैं. उसके लिए किसी अमृत की आवश्यकता नहीं होती.
साभार प्रेम