सठ सुधरहि सतसंगति पाई!

​जाॅन ग्रियर्सन ने आपको दुनिया का सबसे बड़ा समाज सुधारक कह दिया. बताइए तुलसीदास आपको भारत में कितना पढ़ा और आपके सिद्दांतों को जीवन में उतारा जाता है.

शहर-शहर, गांव-गांव दुखियारियों की आंखों में आंसू है. जिस रामनामी को पहनकर आपने कवितावली, गीतावली, रामचरितमानस, रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी लिखा; उसी को पहनकर आजकल गुंडागर्दी होती है.
मन ना रंगावै, रंगावै जोगी कपड़ा. राम जैसा बनाने के लिए आपका प्रयास सराहनीय है, मगर राम के आगे भी आकाश खुला है. चेतनता बहुत बड़ी चीज होती है.
इस देश में बहुत कुछ बदल चुका है. तुलसी आप मेरे आदर्श कभी नहीं थे. लेकिन मै आपका बड़ा सम्मान करता था. आपके गीतों को कभी  कभार गुनगुना भी लेता हूं.
जैसे एक दिन मै आपका लिखा पढ़कर आनंद प्राप्त कर रहा था. जिसमें आपने लिखा था, 
जाके प्रिय ना राम वैदेही;

तजिए ताही कोटि वैरी सम,

जद्यपि परम सनेही.

तज्यो पिता प्रह्लाद विभीषण बन्धु भरत महतारी.

तुलसी आपने प्रभावपूर्ण लिखा था. भाषायी स्तर के गिरावट आपको कठिन समझकर पूजा की कोठरी में छोड़ कर पारायण करने के काम में लेने के अतिरिक्त कुछ नहीं करती.
मै तुम्हारा विरोध नहीं कर रहा तुलसीदास; मै इस बदलाव पर अफसोस जता रहा हूं. सरलीकरण के दौर में विद्वानों के खो जाने का डर सताता है.
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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