​भारत के परिप्रेक्ष्य में अपराध (प्रस्तावना-1)

अगर चर्चा अपराध की होती है तो सरकारी आंकड़े पर विराजित होकर पत्रकारिता की जाने लगती है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ही तय कर पाता है कि अपराध एक सर्वे है जिसे रिकार्ड ही बखूबी बता सकते हैं. मैने एनसीआरबी के रिपोर्ट को सर्वे इसलिए कहा कि आज भी इस देश में बहुत सारी घटनाओं पर एफआईआर नहीं होता है. अपराध को बढ़ावा देने में कई कारक मुख्य तौर पर हिस्सा लेते है. जिनमें राजनीतिक आश्रय प्रमुख है. राजनीतिक आश्रय का मतलब ये हुआ कि एक जनगद्दार राजनेता जब अपने हितों के लिए किसी अपराधी को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जान लगा देता है और पुलिस भी उसके ही इशारो पर नाचने लगती है. इस बात पर किसी को हैरानी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि चाहे लोकसभा या राज्यसभा हो या फिर विधान सभा या विधान परिषद हो सबसे ज्यादा दागी नेता भारत के अलावा आपको किसी देश की संसद में नहीं मिलेंगे.

चलिए दो मिनट इस पर कि अपराध अस्तित्व में कैसे आता है. जब हम अपराध के कारणों को जानने की कोशिश करेंगे तो हमें पहला और बुनियादी कारण यही मिलेगा कि अपराध कर पाने का अपराधी को एक माहौल मुहैया किया गया. पुलिस प्रशासन द्वारा बिना ढील मिले कोई अपराध हो ही नहीं सकता. कहीं कहीं तो इस बात की भी पुष्टि होती है कि अपराधी और पुलिस की मिलीभगत से अपराध की वारदात अपने अंजाम तक पहुंचने में सफल हो पाई.

अपराध होने का दूसरा कारण विकृत मानसिकता होती है. आदमी किसी से मानसिक द्वेष पाल लेता है. फिर उस पर हमला कर देता है. पारिवारिक रंजिश या कोई विवाद.

(अपराध की मध्यावस्था आगे….,,,,)

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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