मन अशांत है. किस दुनिया में चला जाता है, पता नहीं चलता. दुनिया अगर गोल है और गोल एक साइकल बनाता है. तो मेरी दुनिया पुनरावृत्ति क्यों नहीं करती!
मैने बहुत पहले पढ़ा था कि अगर अच्छे लोग रूठ जाए तो सारा दोष खुद पर मढ़ते हुए उन्हें मना लेना चाहिए. सबसे ज्यादा मुसीबत इस बात की है कि कोई रूठने का नाटक ही ना करे और निष्ठुर बन के बैठ जाए तो ताल्लुक़ों की चौकीदारी कोई कैसे कर सकता है.
अपने अनुभव की बारिकियों में जब घुसता हूं तो उसकी गहराई का पैमाना बढ़ता चला जाता है. शब्दों की तारतम्यता बना पाना इस समय थोड़ा मुश्किल हो जाता है. अपने अनुभव को सरलता लिखने का प्रयास किया है यहां मैने. शब्दों के पुल बांधने का प्रयास करूंगा, मजबूती तय करना आपके हाथों में छोड़ता हूं.
रात के सवा दो हो चुके हैं. मन मेरे लिए दहकती बेचैन भट्ठी की तरह हो गया है. ना कोई दुराव है और ना ही प्रभाव का नजाकत.
बिल्कुल शून्य हो चुके कुछ जीवंत रश्मि है.
#रश्मि