पारंपरिक साहित्य के इतर #Facebook पर भी कुछ साहित्य के मजदूर मौजूद है. कुछ अच्छे और नए कवि मेरे मित्रसूची में भी है. जो किसी साहित्यिक पत्रिका में शीर्षस्थ नहीं है. नवलेखन को उम्रदराज साहित्यकार कुछ समझते नहीं है. इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए.
मै साहित्य के प्रचार-प्रसार के नाम पर हो रहे अकादमिक घोटालों का भी पर्दाफ़ाश करने की कोशिश करूंगा. इस क्रम में कई प्रकाशन भी अपनी आजिविका चलाने के अलावा ये नहीं सोचते कि भारतीय साहित्य की एक साफ-सुथरी छवि आजाद भारत में बनाई जाए.
10 कवि और लेखक भारत का साहित्य नहीं हो सकते. विशालतम भारत की बौद्धिक संपदा में भी घोटालों की जांच होनी चाहिए.
हो सकता है कि कोई साहित्य अकादमी या ज्ञानपीठ का असली हकदार किसी छोटे से गांव में साहित्य की किर्तिमान रच रहा हो.
जय भारत जय साहित्य
#ओजस