गोरखपुर में एक और बच्चे ने दम तोड़ दिया. ये गोरखपुर में जुलाई 2017 में इंसेफेलाइटिस से मरने वाला 26वां मरीज है. 1978 में जब इस बीमारी की पहली बार पहचान हुई थी तो उस समय किसी ने इस बीमारी को लेकर किसी भी प्रकार की गंभीरता नहीं दिखाई थी. उस समय इस त्रासदी को सहना ही इसका रोकथाम माना जाता था. ना जाने कितने लोग इस बीमारी को झेलते-झेलते मर गए और कितने विकलांग हो गए.
1978 से चला आ रहा कहर अब पूरे पूर्वांचल में फैलने लगा था. लोग नाउम्मीद होने लगे. इस कहर पर भी इस देश में दोयम दर्जे की राजनीति करने वाले नेताओं की कोई कमी ना थी. लाशों के कतार लगने शुरू हो गए थे. इस रोग ने एक खुंखार और विकराल रुप धारण कर लिया था. पूर्वांचल के जिलों में ये बीमारी एक त्रासदी बन चुकी थी।
इस बीच एक मसीहा आता है और गोरखपुर की जनता की तकलीफों को 1998 में संसद में उठाता है. ये कोई और नहीं यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ ही थें.
70 के दशक में शुरू हुए इंसेफेलाइटिस रोग के मुद्दे को 1998 में पहली बार संसद में उठाने वाले योगी आदित्यनाथ अब सूबे के सीएम हैं. उनको अपना आंदोलन भूलना नहीं चाहिए. उनका उत्तरदायित्व बनता है कि वो गोरखपुर समेत उन 38 इंसेफेलाइटिस प्रभावी जिलों से इस बीमारी को जड़ से समाप्त कर एक किर्तिमान स्थापित करें.
ये सवाल इसलिए क्योंकि इंसेफेलाइटिस सीजन शुरू हो चुका है और मौतों का ग्राफ पिछले साल से आगे निकल चुका है। गोरखपुर मंडल में 13 हजार जागरुकता रैलियां निकाली जा चुकी हैं. लेकिन इसके बावजूद मृत्यु दर पिछले साल से सवा 4 फीसदी बढ़ा है. 2017 में इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों का मृत्यु दर 31.49 फीसदी है जबकि 2016 में मृत्युदर 26.16 थी.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने इंसेफेलाइटिस को जड़ से मिटाने के लिए विगत 25 मई को टीकाकरण अभियान चलाया है. मसलन; गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा में हर साल इस बीमारी के कारण सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है।
स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के मुताबिक जापानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिये 2006 से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ था. लेकिन यह पाया गया है कि करीब 40 प्रतिशत बच्चे 9 से 12 माह पर तथा 16 से 24 माह की आयु पर दी जाने वाली खुराक से वंचित रह जाते हैं। इस बीच गोरखपुर मण्डल में कमिश्नर ने कमान संभाली। कमिश्नर ने दावा किया कि मंडल में 13 हज़ार रैलियां निकाली गई।
इस बीच एक सवाल बना रहता है कि क्या गोरखपुर, योगी आदित्यनाथ और इंसेफेलाइटिस का नाम एक दूसरे के साथ जुड़ा रह जाएगा, क्योंकि गोरखपुर के ताल्लुकात 2019 चुनाव के लिए उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है मगर इंसेफेलाइटिस से अपना पाला ना छुड़ा पाने की स्थिति में उनको दो जगह मात खानी पड़ सकती है, एक तो गोरखपुर के ताल्लुक आंशिक हो सकते हैं और दूसरा इंसेफेलाइटिस के कहर उन्हें झकझोर कर रख देंगे.