साम्प्रदायिक हिंदू जाहिल हैं जो ‘वंदे मातरम्’ कहने के लिए किसी को बाध्य करते हैं और कट्टर मुस्लिम मूर्ख हैं जो ‘वंदे मातरम्’ कहने पर हंगामा करते हैं. दोनों समय भारत के राष्ट्रीय गीत का अपमान होता है. राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता. 522 में जब हिजरत की शुरूआत हुई उससे पहले भी यहां के लोग इस धरती और अंबर के तले मिल जुलकर रहते रहे होंगे. करोड़ों साल पहले जब सनातन प्रारंभ हुआ होगा उस समय भी इस देश में मातरम् के मकसद का यथार्थवाद रहा होगा.
इस्लाम अगर इस बात की मनाही करता हो कि वंदे मातरम् कहने से माँ का नाम आता है और ऐसा हमारे धर्म में निहित नहीं है तो इस्लाम से सिर्फ एक सवाल है कि जो अल्लाह बिना स्वरुप के है वो माँ क्यों नहीं हो सकता है.
अगर और तथ्यपरक समझना हो तो ये समझ लीजिए कि दुनिया का हर इंसान माँ के कोख से पैदा होता है. तो माँ और स्त्री का प्रेयर आपके इस्लाम को स्वीकार नहीं तो करते रहो तीन तलाक, हलाला और लव जेहाद. अल्लाह तो मिलने से रहा.