(डायरी से…)
जितना ही मै अपने दिमाग से उन्हें निकाल रहा था. उतनी ही तेजी से वो दिमाग में आती जा रही थीं. इस Universe का इन दो लाइनों के अलावा मौलिक(Fundamental) मेरे पास कुछ भी नहीं है. मै खुद को उन खयालों से अलग नहीं कर पा रहा था.
जून 2014 में जब पहली बार मैने लिखना शुरू किया तो मै डायरी के अलावा कुछ नहीं लिखता था. लिखकर उसे जी लेने की कोशिश में मै शायद आत्मप्रेमी बनता गया.
मुझे बहुत कुछ पढ़ते रहने का जैसे नशा सा छा गया हो. किताबों के बिना मै अधूरा महसूस करने लगता था. बेचैन हो उठता था. तकरीबन दो महीने बाद जब मैने अपनी डायरी दुबारा पल्टी तो मुझे लगा कि मुझे लिखते रहना चाहिए.
मैने अपने पहली पारी की शुरूआत #नेह से की. वैसे नेह शब्द का शाब्दिक अर्थ उस डोर से है जो दो लोगों के बीच खिंचाव और तनाव के असर को बनाए रखने का काम करती है. जिसे हम प्यार कहते हैं. आधुनिक दौर में प्यार के मायने अपने स्वरूप को अस्वीकार कर देते हैं.
खैर, नेह एक प्रतीकात्मक रूप था. जब भी मै लिखने बैठता पहले अपना आत्ममंथन करता. मैने सजग प्रहरी की तरह इसके चेहरे को संरक्षित करने की कोशिश की है. मैने नेह का स्वरुप गढ़ने में कभी किसी भी प्रकार की चतुराई नहीं दिखाई.
जिस प्रावस्था से मै गुजर रहा था. उसमें अकेलापन ही मजबूती देता था.
निराला ने कविता के बारे में कुछ ऐसा ही कहा है-
“निकलकर आंखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान.
#नेह