संस्कृत साहित्य में महाकवि माघ का विशेष स्थान है. कवि माघ जब नौजवान थें और उनकी कविताओं के चर्चे देश-विदेश में हो रहे थें. उस दौरान महाकवि माघ की जिंदगी में एक ऐसी घटना घटित होती है जिससे आज भी एक सबक ली जा सकती है. वैसे तो महाकवि माघ के शिशुपालवधम् को लोग बहुत पसंद करते थे. राज दरबारों और संगोष्ठियों में महाकवि माघ की कविताओं को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता था. उनके बारे में कहा जाने लगा. कि जिस प्रकार उपमा अलंकार का प्रयोग करने में कालिदास का जोड़ नहीं मिलता और अगर बात कि जाए अर्थ की महानता की तो भारवि का नाम आता है, ठीक उसी तरह दण्डी द्वारा ललित साहित्य लिखा जाता है. ऐसा लगता है कि इन तीन दिग्गज कवियों कालिदास, भारवि और दण्डी के उपमा, अर्थगौरव और पदलालित्य की विशेषता महाकवि माघ में एक साथ आ गई हो.
लेकिन इन सबके बीच एक घटना से महाकवि माघ दुखी हो गए. दरअसल जिन सभाओं में महाकवि माघ कविता पाठ करते थें. उसमें उनके पिताजी पहुंच जाते थें और व्याकरण या छंद की छोटी मोटी गल्तियों को बताते हुए उनका अपमान कर देते थें. महाकवि माघ को लगा कि जिन सभाओं में मेरी कविता पर वाहवाही होती थी. उसमें आकर मेरा अपमान कर पिताजी मेरे अपयश का कारण बन जाते हैं. ये बातें तो वो घर पर भी बता सकते हैं.
इन बातों से परेशान होकर माघ ने अपने पिता की हत्या करने का मन बना लिया. अपने हाथ में शस्त्र लेकर वो अपने पिता के कमरे के बाहर पहुंच गए. वो हाथ में शस्त्र लेकर दरवाजे के पास खडे़ कमरे के भीतर हो रही बातों को ध्यान से सुनने लगें.
कमरे के भीतर उनके माता और पिताजी बात कर रहे थें. जो इस प्रकार हैं.
“हमारा बेटा अपनी कविता के लिए पूरे देश में सराहा जा रहा है, लेकिन आप हैं कि उसका अपमान करने से ही बाज़ नहीं आते. हाँ मै मानता हूं कि माघ देशभर में सबसे बेहतर कवि हैं. मुझे इस बात की खुशी है मै चाहता हूं कि मेरा बेटा विश्वकवि बने.
ये बातें सुनकर माघ अपने पिता को गले लगाकर रोने लगें. और उन्होनें लिखा.
सहसा विदधीत न क्रियाम्
(बिना सोचे समझे अचानक कोई फैसला नहीं लेना चाहिए)
#Magh