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एक जानकारी मिली, जो बहुत ही मूल्यवान है. आज संसद में पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल होने पर अभिभाषण दिया. पीएम ने एक चूक कर दी. उन्होनें कहा कि 2022 तक गाँधी के सारे सपने पूरे हो सकते हैं लेकिन सबको मिल कर आगे कदम बढ़ाना होगा.
जिस समर ये आंदोलन हो रहा था, मुस्लिम लीग इसके विरोध में हाथ पैर चला रहा था. ब्रिटिश भारत और आजाद भारत के तेवर एक दूसरे से मिलते हैं.
मोदीजी इस देश में दो राजनैतिक चालबाजी होती है. पहली चालबाजी को पता है कि उनकी राजनीति अल्पसंख्यकों, दलितों और ऐतिहासिक गाथाओं के गाने से चलाई जा सकती है. दूसरी चालबाज़ी में बहुसंख्यक को अपनी तरफ करके, धार्मिक उन्माद को बढ़ाकर और अच्छे वक्तव्य सुनाकर की जा रही है. इनकी जमीनी हकीकत क्या है. ये बताने की जरुरत नहीं है.
गीता में लिखा है कि जब किसी आदमी को अधिकार और पैसा एक साथ दिया जाने लगता है तो वो नियम पालते हुए भी ईमानदारी नहीं बरत सकता. राजस्व इकट्ठा करके पेटीएम का प्रचार करना सही बात नहीं है साहेब. हमें तो चाइनीज पटाखे फोड़ने का विरोध किए, चाइनीज राखियां तक नहीं बिकने दिया और आप चाइना की कंपनी अलीबाबा के 40 फीसदी से चलने वाली कंपनी पेटीएम का खुला प्रचार करने लगे.
जनाब देश के लोग आपको भगवान समझने की भूल कर रहे हैं. कम से कम उनकी उम्मीदों पर तो पानी ना फेकिए.
रोजगार सृजन में आपकी सरकार फीसड्डी निकली. नई पीढ़ी हो सकता है आपके बहकावे में ना आए. आपकी नोटबंदी को लेकर रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर सवाल उठे. दुनियाभर में अर्थव्यवस्था के सेमिनारों में भारत की तरफ से जाने वाले अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन कह रहे थें कि ये कोई कारगर उपाय नहीं है. लेकिन उस समय रामदेव से बड़ा अर्थशास्त्री कोई और कहां था.
आपने एड़ी चोटी की ताकत लगा दी लेकिन न्यूक्लियर सप्लायर ग्रूप में भारत शामिल नहीं हो सका. हाँ एक फायदा हुआ कि भारत के लोग स्विस बैंक के अथाह पैसों को नोटबंदी में भूल गए. जिस कांग्रेस की आप कलई खोलने का वादा किए थें वो भी बच गए.
बहुत कुछ मन में हैं कि लेकिन आज के लिए बस इतना ही.