सरकारें प्रतिनिधित्व करने के लिए होती हैं। सरकारें जब जनवादी ना रहकर अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करने लगती हैं तो तानाशाही का जन्म होने लगता है। पाकिस्तान सरकार गिलगितों के साथ जो रवैया अख्तियार कर रही है उससे साफ है कि वो एकाधिकार के रास्ते पर चलने लगी है। इस वाकये के मद्देनजर गिलगित के स्थानीय निवासी पाक सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। नागरिकों ने पाक सरकार के फैसले की खिलाफत की है जिसके तहत गिलगित क्षेत्र पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और फोर्स कमांड नॉर्थ एरिया को हजारों एकड़ की भूमि आवंटित की गई है। दरअसल पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान ने एक तरह से चीन के पास गिरवी रख दिया है। पाक-चीन आर्थिक गलियारा इसी रास्ते से होकर गुजरता है, जिसका पीओके के लोग विरोध कर रहे हैं। चीन-पाक आर्थिक गलियारे को लेकर भी लोगों में आक्रोश का माहौल है। यहां लगातार पाकिस्तान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं। यहां होने वाले प्रदर्शन पाकिस्तान की ओर से पीओके के लोगों पर किए जा रहे जुल्म के खिलाफ गुस्सा है। पाकिस्तानी सेना भी इस इलाके में लोगों पर अत्याचार करती है। गिलगित के स्थानीय निवासियों का कहना है कि गांव के आसपास की 20,000 कैनल की भूमि आवंटित की गई है और ये सब चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को देखते हुए किए गया है।
पाक अधिकृत कश्मीर के पत्रकार मिराज का कहना है कि सरकार ने बिना स्थानीय लोगों से पूछे जमीन दे दी है, गिलगित-बाल्टिस्तान की राजनीतिक पार्टियों ने इसे लेकर चिंता जाहिर की है। आपको बता दें कि गिलगित-बल्टिस्तान की सीमाएं, चीन और अफगानिस्तान के अलावा जम्मू-कश्मीर से जुड़ी हुई हैं. पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर वहां आर्थिक कोरिडोर बना रहा है. इस गलियारे का विरोध यहां की जनता कर रही है. इस इलाके में पहली बार चुनाव साल 2009 में हुए थे, लेकिन यहां के लोग इसे छलावा करार देते हैं. स्थानीय नागरिक पाकिस्तान की नापाक हरकतों और पाक आर्मी के अत्याचारों का विरोध करते हैं।
पाकिस्तान इस बात को भूल रहा है कि भारत ने हमेशा इंसानियत के संरक्षण के लिए फैसले लिया है। अगर गिलगित और बलोच भारत में मिलने के लिए आगे आएंगे तो भारत इसे ठुकरा नहीं पाएगा। पीएम मोदी ने भी 2016 के आजादी पर्व पर लाल किले की प्राचीर से बलोच और गिलगित के लोगों पर हो रहे अत्याचार का जिक्र किया था।
पाकिस्तान इस बात को ना भूले कि जिस एशिया में उसकी स्थिति बरकरार है, वहां के दो महापुरूषों गांधी और मंडेला ने ताउम्र शोषण और अन्याय का विरोध किया था।