मेरे कदम डगमगाने लगे थे. शिथिलता चरम पर थी. इस समय कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी के मिशन में प्रतिभाग कैसे कर पाएगा, राह में इतना घना कुहरा कि एक कदम भी चलना मुश्किल. इसे निराशा कहना बिल्कुल गलत होगा.
कई बार जिंदगी में सुलगना पड़ता है. तपे बिना सही बनावट हो नहीं पाती. अरे भईया गुलाब को गुलदस्ता बनाने के बीच गुलाब के नसों को काटकर उसे बेचने लायक बनाना पड़ता है ना.
इसी कड़ी में जब सब कुछ जल रहा हो तो उसे बुझाने की कोशिश बिल्कुल ना करें. क्योंकि ये आग किसी मकान या दुकान में नहीं बल्कि ह्रदय में लगी है. ह्रदय का गलनांक बहुत होता है. इसको इतना तपाइए कि आप बोलिए तो लोग उसकी भांप में गर्माहट महसूस करें.
मेरे पसंदीदा शायरों और कवियों में वे लोग ही हैं जिन्होंने कविताओं में आंसू टपकाएं है. अगर कोई पीड़ा थी ही नहीं तो आह से उपजी गान लिखी कैसे गई.
अन्तर्मुखी लोग बहुत लिखेंगे और सुनेंगे-पढ़ेंगे नहीं तो बोल नहीं पाएंगे. क्योंकि वो कमतर और प्रभावपूर्ण बोलना ही पसंद करते हैं.
हमने अगर अपने जीवन में साफ और स्पष्ट लिखा नहीं तो ये सबसे बड़ी कमजोरी है. आपकी प्रस्तुति बेहतरीन नहीं है कोई बात नहीं, आप अच्छे वक्ता नहीं है. रैपीडली बोल नहीं पा रहे तो भी कोई बात नहीं, लेकिन अगर आप पढ़ा लिखा होने के बावजूद लिखने के आंदोलन में सक्रिय नहीं हैं तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं.
आप सुबह योगा करना छोड़ देंगे और उस समय में शांत मन से अपने विचार अपनी बातों का समावेशीकरण करने बैठने लग जाए मेरा दावा है कि आप एक पुनर्जन्म होने से ज्यादा आनंद हासिल कर रहे होंगे.
सुबह टहलना छोड़कर अपने मन की शिथिलता को टहलाना शुरु किजिए आप नए आयामों को प्राप्त करेंगे जो आप टहल कर प्राप्त नहीं कर सकते.
आप अगर ईश्वर की आराधना कर रहे हैं तो उस प्रार्थना में से समय बचाकर अपने अन्तर्मन के इष्ट के मुद्रक बन जाइए मुझे पूरा विश्वास है कि आप खुद को जीना शुरू कर देंगे.
मै तो अपनी बुरी परिस्थितियों में भी लिखना नहीं छोड़ता.
एवमस्तु