भारत में छठीं सदीं में जब इस्लाम के विस्तार के लिए प्रयास किए जा रहे थे. उस दौरान बौद्ध धर्म अपने उत्कर्ष पर था. विस्तारवादी इस्लाम को बौद्ध के दलित धर्मांतरण से चिढ़ हो गई. बहुत सारे लोग बौद्ध धर्म के उपदेश ‘जीवों पर दया करें’ की नैतिकता से डरने लगे.
7वीं और 8वीं शताब्दी में बहुत सारे जीव मारे जाने लगें. बौद्ध भिक्षुकों ने इसे पाप कहा और इस गतिविधि को अंजाम देने वाले लोगों को दुराचारी कहा.
धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है कि जिसे आप अपनी स्वतंत्र इच्छा से धारण कर सकें. अगर आप इसकी निजता बरकरार रखने के लिए नये विचारों को तिलांजलि देंगे. तो धर्म अपनी निजता खो देगा.
एवमस्तु…,,