भारतीय वर्तमान समाज बहुत बड़े असमंजस की स्थिति में जी रहा है. विचार और सूचना का एक पक्ष होता ही है. कोई भी विचार या सूचना निष्पक्ष नहीं हो सकती. अचरज करने की कोई जरुरत नहीं है. मान लीजिए हम एक क्राइम की खबर लोगों को समझा रहे हैं जिसमें पुलिस ने हमलावर अभियुक्तों को पकड़ने के लिए गोलियां चलाई. अब हम यहां पुलिस के साथ स्टैण्ड करेंगे जिसने एक मुजरिम को एनकाउंटर में मारा है क्योंकि सरासर गलती अभियुक्त की थी.
अगर राजनेता जनता से वादे करके उनसे मुकरने की कोशिश कर रहे हैं तो उस समय जनता का पक्ष लेना ही पत्रकारीय कसौटी पर खरा उतरना कहा जाएगा. हम किसी भी हालात में दोयम दर्जे की राजनीति के तटस्थ होना भी सही नहीं समझेंगे. दरअसल, पत्रकारिता की सैद्धान्तिक बातें प्रयोग में नहीं लाई जा सकती. निष्पक्ष होकर आप किसी खबर की हेडलाइन तो लिख ही नहीं पाएंगे.
यथार्थ का भी एक धरातल और एक पक्ष होता है. कभी-कभी आप जनवाद के पक्षधर रहना नहीं पसंद करेंगे जब जनता गलत इशारों पर सिस्टम से भिड़ने की कोशिश करे. जैसे अभी हाल ही में डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख जिसे रेप जैसे अपराध पर सीबीआई कोर्ट ने सजा सुनाई है; उसके समर्थकों ने पत्थरबाजी और आगजनी शुरू कर दी. हाँ कभी-कभार पत्रकारीय दृष्टिकोण ऐसी गतिविधियों पर जनता के साथ रहा है; वो समय आपातकाल का था.
हर दशा में सूचना का एक पक्ष होता ही है.