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(धारा के विरुद्ध संघर्ष का संकल्प)
ये मनमर्जियां नहीं चलने देंगे; सरकारे अपना दायरा भूल रही है. म्यांमार सरकार अगर रोहिंग्या मुसलमानों पर आफत ढा रही है तो इसका मतलब ये भी निकलता है कि दुनियाभर के प्रभावशाली लेखक इस निर्ममता को रोकने में असमर्थ हैं. ये ज्यादती करिश्माई नहीं है. इसमें एकाधिकार और वर्गीकृत समाज और जनजातीय वर्ग की बूं आती है. रोहिंग्या मुसलमान जिस दौर से गुजर रहे हैं, वे दौरे आम है. क्योंकि ऐसी स्थितियां एशिया और अफ्रीका के उन देशों ने बर्दाश्त की है, जिन पर यूरोप का उपनिवेश स्थापित था. आज स्थिति थोड़ी उलट है. गोरे गुलामी को बनाये रख नहीं पाए तो इसका जिम्मा अब चंद देश के सरकारों ने ले लिया. किसी विशेष वर्ग को टारगेट करना अगर देशहित में माना जा रहा है तो म्यांमार सरकार बहुत बड़ी गफलत में चूर है.
अफ्रीका और एशिया के दो सतही व्यक्तित्वों का नाम दिमाग को शांत कर देता है कि वैचारिक प्रभाव अब क्यों नहीं उस समय जैसा बन पाता है जब नेल्सन मंडेला और बापू के सामने ठीक इसी प्रकार की समस्या आन पड़ी थी.
मित्र सरकारें गांधी और मंडेला के सपनों को ताक पर रखकर म्यांमार को फटकार नहीं लगा रही ये हैरान कर देती है. रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला नस्लीय भेद और नस्लीय समाप्तिकरण का परिचायक है.