जब हम आजाद नहीं थें तो आजादी की सोच, आजादी का मिशन, उसकी समझ बरगद के पेड़ के नीचे छहाने जैसी थी. आज की आजादी नारियल के पेड़ के नीचे बैठी है. अंधेर नगरी में लोकतंत्र अंग्रेजियत से कम नहीं लगती. मनमर्जियां सियासत के जीन में है. राजनेता, गांधी के सपने भयरहित भारत को चकनाचूर कर साल में बापू को एक फूलमाला पहना देते हैं और हम हाथों में तिरंगा लेकर आजादी के जश्न में मशगुल रहते हैं.
समय के साथ आंख मिचौली करना सही नहीं होगा. बदलाव की उम्मीद किससे की जाए समझ से परे है. आधुनिकता जिसे समझ बैठे हैं वो बिल्कुल भी नहीं है. आधुनिक होने का मतलब ये है कि कोई व्यक्ति अपने तरीके से अपने ढब में ढ़लने के लिए स्वतंत्र हैं ?