क्या हिंदी का पतन आपको विचलित नहीं करती !

____________________________________

किसी भी भाषा के लिए शब्द मुख्य होता है, जैसे सागर के लिए बूंद और पेड़ों के लिए धूप. हाँ बूंदों से घड़ा ही नहीं समुद्र भी भरा जा सकता है और सूरज से मिली धूप से पेड़ पर्णहरिम(क्लोरोफिल) बनाते हैं.

हिंदी के शब्द और उनके पर्याय इतने ज्यादा हैं कि ऐसा दुनिया कीे बहुत कम भाषा में मिलता है. भाषावाद होना नहीं चाहिए. मगर शब्दवाद जरूरी है. कई दफा हमें लगता है कि आम बोलचाल की भाषा सबसे बेहतर है लेकिन मुझे लगता है कि किसी भी भाषा का स्टेप डाउन नहीं बल्कि एक ढलान है जो इसकी बुनियाद पर लगातार प्रभाव कर रहा है. आधुनिक समाज को एक भाषायी साम्य बनाने की जरुरत है. अंग्रेज़ी में आप कितने फिसदी हिंदी मिला सकते हैं? ये सवाल इसलिए कि आमबोलचाल वाली भाषा हिंदी का श्रृंगार उजाड़ने पर तूली हुई है.

ये मनमर्जियों का युग है. व्याकरण और शब्दावली को मत खोलिए और कहिए कि आम बोलचाल की भाषा होनी चाहिए. आम बोलचाल की भाषा के लिए आंदोलन कर दीजिए, सड़कों पर उतर आइए और आंदोलन कर दीजिए लेकिन आपका आंदोलन हिंदी की प्रकृति और प्रवृत्ति के लिए दीमक का काम करेगी. चलिए मान लिया जाए कि बहुत सारे लोग भाषायी पाबंदियों से कोई ताल्लुक़ नहीं रखते और वे अपने क्षेत्र के बड़े माहिर इंसान हैं. तो क्या किया जाए?

हाँ ये सवाल बहुत वाजिब है कि हिंदी का एक सामंजस्य स्थापित करना थोड़ा कठिन है. अगर आपके भाषा कुछ समय हो तो हिंदी के स्तर को गिरता देख आप विचलित मत होइएगा. आइए हिंदी के लिए आम बोलचाल की इंग्लिश समझते हैं.

थोड़ा अतीत में चलना होगा. हाँ पुराने आदर्श हमारे वर्तमान को बेहतर बना सकते हैं. पुरानी बातें हमें एक प्रेरणा दे सकती हैं कि उचित होने की कसौटी पर खरा उतरना सैद्धान्तिक नहीं प्रायोगिक है, और प्रयोग प्रेक्षणों पर आधारित होता है.

बात इतनी पुरानी है कि उस समय की आधुनिकता आप को आज की आम बोलचाल की तरह नहीं लगेगी. आपको याद होगा जब इतिहास में हमें नवजागरण काल पढ़ाया गया था तो आर्य समाज के प्रवर्तक दयानंद सरस्वती के एक कथन के बारे में बताया गया था जिसमें दयानंद सरस्वती ने सनातन में तमाम तरह कीे कुरीतियों और प्रथाओं को समाज से मिटाने के लिए कहा था वेदों की ओर लौटो. आज मुझे ऐसा कहने का मन हो रहा है हिन्दी की ओर लौटो. कहीं हिंदी भी संस्कृत की तरह कम लोकप्रिय ना हो जाए.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: