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(डायरी से…)
सवाल का जवाब हमारे अज्ञान को आंख देने जैसा होता है. कई दफा अपनी जिज्ञासा पर हमें सही और सटीक जवाब नहीं मिलता है तो हम संतोषजनक और बेहतर जवाब को ढूंढने की कोशिश में विश्व नागरिक (Cosmopolitan) बनने लगते हैं.
पिछले 6 महीने से मेरे कई बारीक़ सवाल अनुत्तरित रह गए. जब मन में उपजा सवाल अपनी धुरी को होकर नहीं जाता यानी सटीक जवाब नहीं मिल पाता है तो आप ग्लोबल इंसानियत की बारीकियों को समझने की कोशिश में लग जाते हैं.
कितना रोमांचक होता है ना. पर्याय ढूँढ़ना. अपनी समस्याओं, अपने सवालों के हमशक्ल को तलाशना.
उस दौरान हमारे पास ज्ञात विज्ञात में अंतर करने का टाइम नहीं होता है. हमें मिडिल ईस्ट में हैवानियत को जानने समझने का सर्वाधिक मन होता है. हम यूरोपीय देशों के उपनिवेश और साम्राज्यवाद की सैकड़ों साल पुरानी दासता को बड़े खिन्न नज़र से देखने लगते हैं.
कुल मिलाकर कहने का बस एक ही मिशन है कि हम पहुंचना वहां चाहते हैं, जहां इंसानियत की पैरोकारी की जा रही है या फिर उस जगह जहां इंसानियत को दरकिनार कर दिया जाता है.
इन दोनों बातों को प्रसारित करने के दो अलग-अलग फायदे हैं. ऐसे जन संचार से हम लोगों को पहली बात तो ये बता पाएंगे कि किसी भी प्रकार का अपराध समाज या किसी मुल्क के द्वारा बिलकुल भी स्वीकार नहीं की जानी चाहिए. दूसरा अच्छाइयां देखकर लोग खुद को बदलने की कोशिशों में जुट जाएंगे.
#ओजस