सबके अपने-अपने किस्से

जिंदगी में सबके हिस्से में अपना एक बेहतरीन किस्सा होता है. सभी अपने ढब से उस किस्से की तैयारी करते हैं. कोई अपने किस्से को अध्यात्म समझ लेता है और अपने नजरिए से क्षणभंगुर संसार के रवैए को देखता है कभी अचरज में पड़ जाता है तो कभी समझौता ना करते हुए उसी क्षणभंगुर संसार के हित में उन्हें नेकी और धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए संत बन जाता है. संत अब विवादित हैं इसलिए कि कुछेक अपने कर्मेन्द्रियों को संयमित करने में सक्षम नहीं रह पाते. वो बातें जो बुद्ध ने बता दी थी, वो बातें जो अध्यात्म की हैं वो अपने दस इन्द्रियों की सत्ता को काबू करने के बाद अपनी अस्मिता को बनाए रख पाएंगी.

अपने जीवन में सभी कुछ ना कुछ विशेषता लिए हुए होते हैं. जैसा कि मैने पहले भी कहा सबके जीवन का एक फलसफा होता है; जिंदगी एक भरपूर किस्सा लिए हुए होती है. इस किस्से को अदना ना समझिएगा ये उस विराट रूप से भी बड़ा है जिसे कुरूक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिखाए थें. ये मन की गति से भी ज्यादा तेज चलने वाला है. ये स्थिरता पर उतर आए तो शिवधनुष बन जाता है. इन्हें छोटे-मोटे मानवीय किस्से समझने की भूल हरगिज ना किजिएगा.

आइए इन किस्सों के आदर्श स्थितियों को समझने की कोशिश की जाए. इसके लिए आपको अपने बचपने में जाना होगा. जब किलकारी के अलावा लेशमात्र भी आपके पास कुछ नहीं था. दुनिया में एक नन्हे बालक के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि कुछ नहीं होती.

उपलब्धि और बचपना दो अलग चीज़ें हैं. लेकिन व्यक्तिवाद के जिस किस्से को बनाने के लिए जलना-भुजना पड़ता है वो बचपने में ही अपने असर को दिखाने लग जाती हैं.

आगे चलकर सभी अपने-अपने किस्से के उस्ताद बन जाते हैं. कोई गीतकार बनता है यानी बचपने की किलकारी की आदर्श स्थिति. कोई कवि बनता है यानी बचपने में माँ से भूख लगने पर की गई अपील की तरह. कोई लेखक बनता है यानी बचपने में बोलने की शुरूआत करना यक्का-बक्का बोलना लेखकीय अभिरूचि का मनोविज्ञान ही हैं. कोई शिक्षाविद् बनता है यानी बचपने में माँ की गोदी में पड़ा रोता हुआ बच्चा जो सोना नहीं चाहता और बेचैन आत्मा की आदर्श स्थिति को अपनाने की जुगत में पड़ा हुआ है. कोई डांसर बनता है यानी बचपने में घुटनों के बल रेंगते-रेंगते एक दिन अचानक से कमर को ढिलमुल रवैए में साधकर पदताल करना.

कुल मिलाकर कहने का ये मतलब है कि आप बचपने को खारिज करके किस्से लिख नहीं पाएंगे.
बचपने से प्रोफेशनल होने के बीच ही किस्से अपनी आगाज कर देते हैं और आगे चलकर उपलब्धियां आपके हिस्से में आकर आपका किस्सा गढ़ देती है.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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