पद्मावती फिल्म पर जिन्हें आपत्ति है, वे राजस्थान के लोग हो या फिर उत्तर प्रदेश के; भारतीय समाज के लोग हैं. इनको स्वतंत्रता है अपनी बातों को कहने का. ये मध्यकाल के किसी वाकये को लेकर आंदोलन पर उतर आए हैं.
फिल्म को लेकर इन्होंने आपत्ति जताई है कि फिल्म में पद्मावती को गलत तरीके से फिल्माया गया है. इस फिल्म को दिखाए जाने के बाद वास्तविक रानी पद्मावती का सम्मान दांव पर लग जाएगा.
नोएडा में राजपूताना समाज इसका विरोध कर रहा है. मेरठ में कोई संजय लीला भंसाली और दीपिका पादुकोण के सिर काटने वाले को करोड़ों रुपए देने का ऐलान करता है तो कोई फिल्म के रिलीज पर उग्र प्रदर्शन की चेतावनी दे रहा है.
चलिए मान लेते हैं कि इस फिल्म में कुछ आपत्तिजनक चीजें दिखाने की कोशिश की जा रही है. ये भी मान लेते हैं कि इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. लेकिन उससे पहले प्रदर्शनकारियों को इस बात का भी निर्णय करना चाहिए कि क्या वे राजपूताना गौरव को बचा रख पाए हैं?
क्या वे भारतीय समाज में वर्तमान में घट रहे सरेआम अपराधों के लिए आवाज़ बुलंद करने का काम करते हैं. जिस क्षत्रिय शब्द के भरोसे वे आंदोलन पर उतर आए हैं?
बड़ी शर्मनाक बात है कि आजाद मुल्क में ये लोग राजपूताना सिद्धांतों को वे लागू नहीं कर पाए हैं.
मै इन बातों को लिखने और बोलने से कतरा रहा था. लेकिन अब लिखना पड़ रहा है.
प्रदर्शनकारियों जवाब दो कि जिस राजपूताने की बात तुम कर रहे हो उसके सिद्धांतों पर खरा उतरने का माद्दा रखते हो.
अपराध भी सामाजिक आपत्ति है. आए दिन बलात्कार होता है. सरेराह लड़कियों पर अश्लील कमेंट किए जाते हैं. महिला सुरक्षा को ताक पर रखा जाता है. मगर तुम्हारा राजपूताना तेवर दिखाई नहीं देता.
हां मै ये बिल्कुल नहीं कहता कि रानी पद्मावती के जौहर के समर्थन में नहीं बोला जाना चाहिए लेकिन मै एक लेखक होने के नाते इस प्रदर्शन को अनर्गल समझता हूं, उस परिप्रेक्ष्य में जब आजाद भारत में भी महिलाओं का सम्मान नहीं किया जा रहा हो आप गुलामी में उस हक की लड़ाई लड़ने चले हैं.
#ओजस