आज पीएम मोदी को औरंगजेब की याद आ ही गई. अंग्रेजों ने डिवाइड एण्ड रूल का सहारा लिया लेकिन वर्तमान में राजनेता इतिहास के राजाओं और शहंशाहों को हिंदू बनाम मुसलमान में बांटकर एक सुनियोजित चुनाव कैंपेनिंग कर रहे हैं.
न्यूज़रूम से बाहर निकला और ई-रिक्शे में बैठा ही था कि एक राजस्थानी बिना रूके औरंगजेब के साथ अकबर को भी गलियाने लगा. हेमंत सर जब मीडिया माॅनिटरिंग सेशन में हेट स्पीच पढ़ाते थें तो लगता था कि एक नेता के भड़काने से यहां के लोग भाईचारे को ताक पर नहीं रखते होंगे.
रूरल में तो कर्फ्यू और हिंसा आम बात है मगर महानगरों के लोग तो नेताओं की रणनीतियों को भांप ही लेते होंगे. आज मै पूरी तरह से गलत साबित हुआ. रिक्शे पर बैठा वो आदमी मेरे सामने बैठा था. उसने ना तो अकबर को पढ़ा था और ना ही औरंगजेब को. वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के औरंगजेब शब्द के इस्तेमाल में अपनी बादशाहत देख रहा था.
हिंदुस्तान में लोगों को सामाजिक उत्थान और प्रगतिशील सोच के मकसदों पर काम करने की जरुरत है. भड़काऊं भाषण पीएम मोदी दें या फिर कोई और वो लोगों को बांटने का ही काम करेगा.
क्या प्रधानमंत्री संविधान के उत्तर दायित्वों को एक पार्टी के प्रचार के मद में भूल जाएंगे.
हल्दीघाटी में हिंदू और मुस्लिम के बीच लड़ाई नहीं हुई थी. हल्दीघाटी में लड़ाई दो राजाओं के बीच हुई थी. देश में इसी बात की विडंबना है कि हम पढ़ना लिखना छोड़कर दोयम दर्जे की राजनीति का अनुसरण करने लगे हैं. जिन लोगों को आजाद भारत के नवनिर्माण और हिंदू मुस्लिम एकता को एकछत्र बनाए रखने का जिम्मा दिया जाता है वो राजनैतिक हित में इस बात को भूल जाते हैं.
आखिर क्या कारण है कि लोकतन्त्र में वंशवाद का बहिष्कार करने वाले नेताओं को मध्यकालीन इतिहास से चेहरे ढूंढने पड़ रहे हैं. जिन हिंदुओं को लगता है कि अकबर उनके पूर्वजों से लगान वसूलता था. मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी था और हिंदुत्व के लिए खतरा था. वो उसके सेनाध्यक्ष मानसिंह को भूल रहे हैं जोकि एक हिंदू था. अकबर कि सेना में करोड़ों हिंदू भी थे.
इसी के साथ जिन मुसलमानों को लगता है कि राणा प्रताप हिंदू राजा थे, उन्हें समझना होगा कि राणा प्रताप के बहुतेरे सेनानी मुसलमान भी थें. विनम्र निवेदन है कि हल्दीघाटी की लड़ाई को हिंदू मुसलमान की लड़ाई मानकर लोकतांत्रिक भारत के हिंदू मुस्लिम गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश ना हो.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)
#ओजस