नेताओं के मुरीद मत बनिए. ये देखिए कि कौन सा विधायक अपने विधान सभा क्षेत्र में और कौन सा सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में सर्वांगीण विकास, रोजगार मुहैया कराने और बदहाल जनजीवन को बदलने की कोशिशों में लगा है.
इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत के युवा अपने फैसले देशहित में लेने वाले हुए हैं. आज हमें अपने दायित्वों का भार खुद ढ़ोना होगा. मैं न्यूज़रूम में बैठकर भारत की जिस तस्वीर को बीते दो सालों से देख रहा हूं. वो असंतोष से भरा है.
इस पत्र को लिखने का एकमात्र मकसद ये है कि आप राजनीतिक चालाकियों को समझ नहीं पाते और धार्मिक स्वाभिमान और कुछ आदर्शों और विचारों के प्रभाव में आकर ‘युवावाद’ की तौहीन कर देते हो. देशभर में बहुत सारे बेबाक और ईमानदार नेता हैं, जिन्हें भारतीय लोकतंत्र के लिए आगे चलकर तन्मयता के साथ काम करने की जरुरत है.
आपको वर्तमान नेताओं के इतर गोपाल कृष्ण गोखले, विनोवा भावे, कर्पूरी ठाकुर, जगजीवन राम और जयप्रकाश नारायण को अपना आदर्श नेता बनाना चाहिए. कायदे से तो इन्हें भी नहीं बनाना चाहिए लेकिन जो राजनेताओं की भक्ति में मदांध हैं, उनकी बेहतरी तो इसमें सुनिश्चित हो ही सकती है.
भारतीय युवाओं को बहुत मजबूत बनने की जरुरत है. ये बड़ी आसानी से किसी के भी चंगुल में फंस जाते है. हां, लाचारी होती है. फिर भी अपने राष्ट्रप्रेम के मिशन को हमें दांव पर नहीं लगाना चाहिए.
दरअसल, भारतीय युवाओं को अभावरहित और प्रभावरहित जीवन बिताने की जरुरत है. क्या इस दौर में सटीक आदर्शवाद स्थापित करने के लिए पुरानी विचारधाराएं फिट बैठ सकती है. मेरा मानना है बिल्कुल भी नहीं.
मैंने बड़े ध्यान से देखा है और पाया है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी हो या फिर बीएचयू वहां विश्वविद्यालयों में कुछ ऐसे भारतीय युवा हैं जो राष्ट्र के पुनर्निर्माण में विशेष भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन वे कुछ पार्टियों पर टंगने के लिए मजबूर हैं. कोआॅपरेट करने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है.
अभी उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव हुआ. इस चुनाव में मैने पाया कि बहुत कम निर्दलीय प्रत्याशी ही चुने गए. इससे साफ जाहिर होता है कि बहुत सारे प्रत्याशी मजबूत पक्ष का चयन करते हैं. और मजबूत पक्ष का चयन वे ही करते हैं जो कहीं ना कहीं कमजोर होते हैं या फिर उन्हें अपनी मजबूती पर भरोसा नहीं होता.
सत्ता पक्ष यानी बीजेपी की विफलताएं आप पूरी ताकत से प्रसारित नहीं कर पा रहे हो ये भी एक कारण है.
इस देश की हिफाजत के लिए हमें एकजुट होने की जरुरत है. आइए हम सब मिलकर एक वैचारिक आंदोलन शुरू करते हैं. जिसका निर्वहन हम पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ करेंगे.
इस उम्र में भटकाव के तमाम आसार अपने आप बन जाते हैं. उस समय हमें समझ का इस्तेमाल करना होगा. नैतिक मूल्यों का पालन करने में कई बारी चुनौतियां मिलना आम है. इन चुनौतियों का सामना हमें अपने अपने सामर्थ्य के हिसाब से करनी चाहिए.
अगर हमारे मिशन अपने-अपने स्तर पर भी मिलते-जुलते से हो जाएंगे तो वो दिन दूर नहीं जब भारत के लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था का पूरा फायदा उठा पाएंगे. जमीनी स्तर पर बदलाव होगा. युवा भारत में बुज़ुर्ग राजनीति पनाह मांगती फिरेगी.
#ओजस