NYOOOZ का स्तंभ(Column) अनकही-अनसुनी जानकारी और ऐतिहासिक विरासत का सम्मिश्रण है. समकालीन समय में किसी शहर के बारे में इस तरह की प्रस्तुति ज्ञानवर्धक होने के साथ उसके साहित्यिक, वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और नैतिक आधारों को संबल देने की कोशिश भी कही जा सकती है.
व्यक्तिगत तौर पर मै इस अनूठे मिशन का मुरीद हूं. जिस समय पत्रकारीय मकसदों को ताक पर रख कर टीवी न्यूज़ चैनलों और अखबारों को राष्ट्रवाद साबित करना पड़ रहा हो. उस दौरान अनकही-अनसुनी की प्रस्तुति ऐसे विकारों के लिए आईना है.
पिछले हफ्ते मुझे इलाहाबाद अनकही-अनसुनी में मेरे पसंदीदा गजलकार दुष्यंत कुमार मिल गए. मैंने उनसे जुड़ी कुछ जानकारियां संग्रह की. मुझे उस लेख में चार चीजें सीखने को मिली. पहला कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स किस हद तक मर्मज्ञ और जानकार थें कि उन्होनें ऐसे-ऐसे विद्वतजनों को रचा. हां, विद्यार्थी अपने स्तर पर देशहित के लिए अपनी धुन में रमकर सत्ता पक्ष से सवाल करने का माद्दा रखता है तो इसका श्रेय उस शिक्षक को जाता है जिसने ‘दुष्यंत’ को जनवाद का पक्षधर बना दिया.
दूसरी बात हिंदी के एक बड़े कहानीकार कमलेश्वर और दुष्यंत कुमार के एक साथ पढ़ाई करने की बात मुझे अनकही-अनसुनी के माध्यम से ही पता चल पाई.
तीसरी जानकारी ये मिलती है कि जिस शहर की नींव के निर्माण में विद्वता की ऐसी ईंटें खपाई गई हो वो शहर हर समय प्रासंगिक और मनुहारी बना रहेगा.
चौथी और आखिरी बात ये कि स्मृतियों में अनकही-अनसुनी के ऐतिहासिक विवरण इस कदर अंकित हो जाते हैं जैसे बचपन में दादी के सुनाए गए शेख चिल्ली के किस्से.
खैर, किसी शहर की बहुरंगी छटा पेश करने की कड़ी में अभी इलाहाबाद और लखनऊ से ही अनकही-अनसुनी बातें सामने लाई जा रही है. बहुत जल्द अनकही-अनसुनी के आसमान के नीचे समूचा भारतवर्ष होगा.
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