ठंड बढ़ गई है तो मन किया आज थोड़ा मध्यकाल में और सल्तनत व्यवस्था के दौर में सनातन की लड़ाई कलम से लड़ने वाले बाबा तुलसी को पढ़ा और समझा या यूं कहें कि मनन किया जाए. चलिए बनारस चलते हैं.
गंगा के घाट पर बैठकर तुलसी को महसूस करने की कोशिश करते हैं. सशरीर नहीं तो क्या हुआ! मन कहां स्थित है. उसे तो भेज ही सकते हैं. गंगा स्वर्ग से आई ये आस्था का बिषय है. मगर गंगा को दैविक मानने वाले लोग, उसे देवी कहने वाले लोग कितने पाकीजा होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं रखना चाहिए.
बनारस में तुलसी मिल गए कि नहीं! नहीं मिले तो कोई बात नहीं, सबरी को तो राम मिल गए थें. आपको बनारस में तुलसी का रूप दर्शन हो या ना हो, अनुभूति तो हो ही जाएगी.
कहते है कि बाबा रामबोला कहे गए. पैदा होते ही राम-राम चिल्लाने लगे. घर वालों ने असामान्य बच्चा समझ लिया.
बाबा को इनकी पत्नी रत्नावली ने फटकार लगाई कि इस हाड़ मांस की शरीर के इतने दिवाने मत बनो. बाबा ने कहा जे बात.
घर-बार छोड़ा और बन गए वैरागी. वैरागी बनना आसान नहीं होता. संसार से विरक्त होना, संसार में रहकर अपने बिषयवस्तु राम पर कन्सन्ट्रेट करना बाबा को शुरू में थोड़ा कठिन लगा. लेकिन जब धुनि रमा ही दी तो फिर को रोक सके.
बाबा ने राम पर दर्जनों किताबें लिख डाली. उनका रामचरितमानस इतना लोकप्रिय हुआ कि पूछिए मत. रामचरितमानस को पांचवे वेद की संज्ञा दी गई. ये वर्णानामर्थसंघानाम् यानी व अक्षर से शुरू होता है और दह्यंति नो मानवाः व अक्षर पर ही समाप्त हो जाता है. इसमें सात कांड हैं, बालकाण्ड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड के साथ प्रणीत किया गया है.
ये सामान्य चीजें सभी को पता होंगी. लेकिन सामान्य और अच्छी बातें बार-बार पढ़नी और कहनी चाहिए.
खैर, आज के लेखकों को गोस्वामी तुलसीदास से एक बात सीखनी चाहिए. तुलसीदास संस्कृत भाषा के परम विद्वान थें. उसके बावजूद भी उन्होनें रामचरितमानस में अवधी का प्रयोग किया है. बाबा को ये बात पता थी कि अगर वे अपनी रचना को संस्कृत में लिखते हैं तो वो उस समकाल में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ रचना कही जाएगी लेकिन ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाएगी.
मैंने ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि आज का लेखन कुछ साॅर्ट्स को पूरा करने की चक्कर में क्षेत्रीय और स्थानीय शब्दों के प्रयोग से परहेज़ करता है जिससे उस जगह के लोग सीधे तौर पर कनेक्ट नहीं हो पाते हैं.
तुलसीदास ने अपनी तरफ से जितनी आसान भाषा का प्रयोग करना बेहतर समझा किया. यही कारण है कि आज के दौर में भी लोग उनकी रचनाओं का मतलब बड़ी आसानी से समझ जाते हैं. चलिए अभी बाबा में तन्मय होने दीजिए. शुक्रिया
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