सर्दी जान लेने लग गई है. उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. उत्तर प्रदेश में 54 लोगों की जानें चली गई. वजह थी ठंड. सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ इस बीच रैन बसेरों का निरीक्षण कर एक उम्मीद जगाने का काम करते दिखाई दिए.इन मौतों के बाद भी असुविधाएं कम नहीं होती दिखाई दे रही. बरेली की तहसीलों में कंबल पड़े हैं लेकिन अभी तक बांटे नहीं जा सके. उसके जो पात्र वो निम्न स्तर का जीवन बिताते हैं.
कानपुर से एक रिपोर्ट आई, जिसमें निराशाजनक तस्वीर देखने को मिली. ट्रेन की लेटलतीफी से ट्रेन यात्रियों के समय का नुक़सान तो जो हो रहा है वो हो ही रहा है. इसके साथ ही वेटिंग रूम में बैठने को सीट नहीं मिल रही. पीने का पानी उपलब्ध नहीं है. ये बुनियादी सुविधाएं तो मुहैया करा ही देनी चाहिए. रूम हीटर और अलाव की व्यवस्था भी नहीं है जिससे लोगों को परेशानियां उठानी पड़ रही हैं.
ऐसी दशा अगर महानगरों की है तो सोच के देखिए कि छोटे शहरों मे लोग किस कदर तंग हाल होंगे. इस देश में सरकारें जनता की कितनी हमदर्द है, ऐसे मीडिया रिपोर्ट्स इसको जाहिर कर ही देते हैं.
भारतीय रेल को सबसे पहले देश के पीएम नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के मकसदों को जमीन पर लाने के लिए बड़े स्तर पर काम करने की जरुरत है. साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था आज भी रेलवे स्टेशन्स पर नहीं है.
कानपुर रेलवे स्टेशन पर तकरीबन 200 से ज्यादा ट्रेनें लेट पहुंची. इनमें शताब्दी भी थी. क्या लगता है आपको जिस देश में सेमी-स्पीड ट्रेनें कोहरे की वजह से चल नहीं पा रही हो वहां बुलेट ट्रेन का सिग्नल क्या प्रभावित नहीं होगा?
ठंड में ठिठुरना या ठंड की वजह से 54 लोगों की मौत, इसके बाद भी सरकार, प्रशासन और तमाम जिम्मेदार विभागों की कम दिलचस्पी. इस देश में आदर्श लोकतंत्र स्थापित करने की तरफ अग्रसर हैं?
स्कूलों को बंद कर देने भर से प्रशासन की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. प्रशासन को चाहिए कि वो इस दौरान जिले के दूर दराज इलाकों में भी चिकित्सा संसाधनों से लैस मोबाइल हाॅस्पिटल का निर्माण करवाएं जिससे लोगों को कुछ हद तक आसानी मिल सके.
मान लीजिए किसी बुज़ुर्ग आदमी को ठंड लग गई. अब उसका घर किसी ढंग के अस्पताल से कुछ दूरी पर है.
किसी वाहन की व्यवस्था कर वो उस आदमी को इलाज के लिए लेकर भागता है और रिजल्ट मिलता है कि ठंड ने शरीर की सारी नब्ज ठंडी पड़ गई और मौत हो गई. ये मौत से ज्यादा कुछ लोगों की गैर जिम्मेदारी का परिणाम भी कहा जा सकता है.
खैर, हम भारत के लोग प्रशासन और सरकारों के खिलाफ सच्ची श्रद्धा रखना छोड़ने वाले नहीं. हम मरते रहेंगे और जिंदाबाद बोलते रहेंगे.
#ओजस