– गोस्वामी तुलसीदास
मतलब जिसके इशारे पर सारी व्यवस्था नाचने लगे, उसे कोई दोषी साबित कैसे कर सकता है! वर्तमान में जो घटनाक्रम होता नज़र आ रहा है, दरअसल वो पूरी तरह से सुनियोजित कहा जा सकता है.
सत्ता में काबिज लोग इसको अपने हिसाब से चलाते हैं. थोड़ा पीछे जाइए, गायत्री प्रजापति की गिरफ़्तारी तब तक वही यूपी पुलिस नहीं कर पाती है जब तक अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहते हैं. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही पुलिस को गायत्री प्रजापति मिल जाते हैं.
यूपी में सभी राजनीतिक पार्टी के दो चार बाहुबली होते ही हैं. बसपा के समय में उसके बाहुबली बाइज्जत बरी कर दिए जाते हैं. सपा के समय में भी ऐसा होता है. तो इसी धारा को आगे बढ़ाते हुए, बीजेपी भी कहां पीछे रहने वाली. सीएम से लेकर विधायक तक के केस वापस होने लगे हैं.
बड़ा सवाल ये है कि ये जो लोग कानून के आदर्श स्थिति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, कसूरवार सिर्फ पुलिस कैसे हो सकती है? यानी जनता अगर आपको वोट दे देती है तो आप दूध के धुले हो जाते है. आपका अतीत साफ-सुथरा हो जाता है. तो तुलसीदास की लाइनें आप पर तंज कसती हैं, और प्रासंगिक हो जाती हैं.
बकौल तुलसी;
“समरथ के नहीं दोष गोसाई”
#ओजस