वर्तमान परिदृश्य में गणतंत्र का मकसद एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं दिखाई देता. 69 साल पहले जब हमने भारत सरकार अधिनियम 1935 को हटाकर भारतीय संविधान के अधिनियमों पर आधारित नए राष्ट्र की संकल्पना की होगी तो क्या किसी ने सोचा होगा कि भारतीय समाज अपने गणतंत्र की सजावट इस कदर करेगा!
इस गणतंत्र में कोई तंत्र नहीं चलता है. राजशाही और लोकतंत्र का अंतर तो कभी-कभी दिखता ही नहीं है. अपराध भी जाति आधारित हो गया है. एक समुदाय दूसरे समुदाय की निगरानी में लगा रहता है और जब उसके अपने समुदाय के लोग अपराध करते है तो उसका आंदोलन मर जाता है.
युवा पीढ़ी भी आधुनिकता की मकड़जाल में फंसकर अपने दायित्वबोध की तिलांजलि देती नजर आती है. महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है. वर्तमान के सभी राजनेता गाँधी को श्रद्धांजलि देने राजघाट पर कभी ना कभी गए ही होंगे. वे ही बता दें कि गांधी का हिंदुस्तान गांवों में रखा गया है.
ऐसा मै इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस देश में अंग्रेजियत का असर आज भी मौजूद है. क्षेत्रीय स्तर का विधायक और ब्लाक प्रमुख खुद को तुर्रम खान समझता है. मै गांधी के गांवों वाले हिंदुस्तान को देखने गांवों में गया. वहां मैने देखा कि कड़ाके की ठंड में छात्र जमीन पर टाट पर बैठने को मजबूर है. राजस्व और बजट का पैसा किन परियोजनाओं में खर्च किए जा रहे हैं, इससे किसी को मतलब नहीं है.
गांवों में चुनाव के समय प्रलोभन देकर वोट मिल ही जाते हैं.
एक वाकया सुनिए मेरे गृह जिले आजमगढ़ की. अभी हाल ही में मै घर गया था.
आजमगढ़ के सीताराम मुहल्ला में साफ-सफाई के इंतजाम फिसड्डी खाकर गिर गए है. सफाई कर्मचारी आकर नाली साफ करते हैं, कचड़ा निकालकर बाहर रख देते हैं और उसपर से निकाला गया पटरी-ढक्कन वहीं छोड़कर चले जाते हैं. जब लोग सभासद से शिकायत करते हैं तो वे कहते हैं कि चुनाव में पैसे दिए थें. पैसे भी चाहिए और काम भी. मजबूरन लोगो को खुद आगे का काम करना पड़ता है.
अगर चुनाव में पैसे बांटे गए. तो ये पैसे कहां से आए और अगर चुनाव पैसे से लड़े जा रहे हैं. तो गणतंत्र किसी मजाक से कम नहीं.
देश में नागरिक और नगरराज; नागरिकशास्त्र के सिद्धांतों को झुठलाते नजर आते हैं. कानून व्यवस्था इशारों पर काम कर रही है क्योंकि अगर एक राज्य में पुलिस अपराधियों की एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कही जाती हो इसके बाबत समाज के कुछ असामाजिक लोग किसी फिल्म के विरोध में उग्र प्रदर्शन कर रहे हो तो इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं लगता.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)