सेवाभाव, इंसानियत से अथाह मोहब्बत और सादगी की आदर्श व्यवस्था है. मै एक हिंदू हूं और मदर टेरेसा एक मिशनरी थीं, जो धर्मांतरण भी करवाती थी लेकिन उनके व्यक्तित्व के सामने मेरा हिंदुत्व अदना पड़ गया. ये जानकर और भी हैरानी हुई कि सेवा भाव के लिए समर्पित मदर टेरेसा को भारत में कुछ लोगों की आलोचना भी झेलनी पड़ी. विश्व हिंदू परिषद् के एक नेता अरूप चटर्जी ने उनके धर्मांतरण का पुरजोर विरोध किया था.
मदर टेरेसा का जीवन किसी भी धर्म से ऊपर कि बात है. हमारे धर्मों में व्यक्तिवाद को कितनी जगह मिली है. कोई भी धर्म उठा लीजिए. सबमें एक सामयिक हठवाद की अनसुलझे दस्तूर निभाने का चाल चलन है. अब अगर कोई उसी व्यवस्था में घुसकर इंसानियत की पैरोकारी करने के लिए एक नया रास्ता निकाले तो इसमें अनैतिक और सनातन की उपेक्षा कहां है.
हम सनातनी बनते जरूर हैं लेकिन कोई मिशनरी मदर टेरेसा आती है और हमारे ही सिद्धांतों जैसे सेवाभाव को जमीन पर उतारकर महान बन जाती है और हम मिशनरी गतिविधियों की आलोचना ही कर पाते हैं. लानत है ऐसी वैचारिक विषमता पर और इतनी संकुचित मानसिकता पर.
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