माध्यम का आधुनिक बर्ताव स्वाभाविक नहीं लगता. श्रीदेवी की असामयिक मौत उनके चाहने वालों के लिए तकलीफदेह है. श्रीदेवी की मौत से टीवी न्यूज़ चैनल किस हद तक आहत थें. ये सबने देखा लेकिन हिंदी चैनल्स सर्वश्रेष्ठ बनें रहने के चक्कर में अपनी गतिविधियों से किसी संवेदनशील व्यक्ति को बोलने पर मजबूर कर देते हैं.
थोड़ी तो लाज बचा के रखनी चाहिए. बाथटब में श्रीदेवी मरी तो अब उसमें घुसकर रिपोर्टिंग की जाने लगी.
कम से कम जनमाध्यम को तो बिजनेस आॅफ मीडिया और रिस्पॉन्सिबिलिटी आॅफ मीडिया के बीच एक सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए. आज तक दोयम दर्जे की राजनीति ही होती थी, लेकिन अब कुछ दिनों से दोयम दर्जे की कवरेज भी अस्तित्व में आती दिखाई दे रही है.
कभी सोनम गुप्ता की बेवफाई के इतर देशज मुद्दे और समस्याएं खत्म कर दी जाती हैं. तो कभी ढिनचक पूजा का स्कूटर चलाना और बकवास पत्रकारीय विवेचनाओं का अंग बन जाता है. कभी पूरा News Sense और News Values प्रिया वारियर तक ही सीमित हो जाता है.
कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि जिस प्रवाह में मीडिया बह रही है क्या वो खुद का कोई प्रवाह या प्रभाव बना नहीं सकती.
देश बहुत बड़े संक्रमण से गुजर रहा है, इस संक्रमण के लिए मर्यादाएं सुनिश्चित करने की जरूरत है. (बदलाव की उम्मीद के साथ)