पारंपरिक सोच और कुप्रथाओं को ध्वस्त करने वाले और नवजागरण के समय सामाजिक बदलाव करने वाले पत्रकारीय प्रयोग अब समकालीन पत्रकारिता को देख मिथक से लगने लगे हैं.
क्या Google ट्रेंड और GoogleNews के अलावा कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं रह जाता. जिसकी निगरानी न्यूज़ की समझ को ध्यान में रखते हुए भी बेहद जरूरी समझी जा सके.
पत्रकारिता का क्षेत्र इतना व्यापक है कि कोई बिषय उसके दायरे के बाहर नहीं रखा जा सकता. भारतीय पत्रकारिता का इतिहास इतना गौरवशाली रहा है कि उस पर फक्र किया जा सकता है. तब प्रयोग होते थें लेकिन आज ट्रेडिंग परंपरा के मकड़जाल में सब कुछ अस्त व्यस्त होता दिखाई दे रहा है.
Socio-Drama और सेलिब्रिटीज के फोटो अपडेट को महत्वपूर्ण इसलिए बनाया गया क्योंकि पाठक, दर्शक और श्रोता उसमें दिलचस्पी रखते हैं और इसी के साथ जो कंटेंट उनके हित में होते है उसे वे रद्दी समझते हैं.
मानव व्यवहार और सामाजिक जीवन में बीमार लोगों की सोशल मीडियान पर भरमार है. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता. बिना तथ्य और विश्लेषण के अफवाहों का एक बड़ा जखीरा YouTube चैनल्स समेत Facebook, Twitter, Instagram और Snapchat जैसे तमाम सोशल जनमाध्यमों पर प्रसारित किया जा रहा है. इसके लिए इन कंपनियों को कुछ दायरे सुनिश्चित करने की जरूरत है.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)