अगर ‘दलित’ के शाब्दिक अर्थ पर ध्यान दिया जाए तो बात कुछ और ही निकल कर आती है. जिस देश में लोकतंत्र हो वहां किसी को दलित संबोधित करना ही अलोकतांत्रिक लगता है. दलित का मतलब होता है समाज में शोषित, वंचित और हाशिए पर रखा गया आदमी. क्या अब तक के आरक्षण के बाद भी ये अल्पसंख्यक वर्ग दलित ही रह गया है.
किसी लोकतांत्रिक गणराज्य में किसी को दलित कहना या संबोधन करना ही अनैतिक है. अंबेडकर से इस बात पर मै असहमति रखता हूं कि शूद्रों को दलित कहना और उस व्यापक असंतोष को खारिज करवाने का श्रेय भी चस्पा कर लेना गलत है. सही मायने में दलितों का उत्थान तब होता जब वर्तमान भारत में किसी को दलित की संज्ञा ना दी जाती.
#dalits