तब मै 7 साल का था

(एक 7 साल का लड़का कितना निश्छल होता है, इस बात को संस्मरण के आखिर तक भूलिएगा नहीं.)

आज बड़ी आसानी से लोग कह देते हैं कि ब्राह्मण होने की वजह से ही मै दलित आंदोलन की मुखालफत कर रहा हूं. हां मै ब्राह्मण हूं. सात्विक तो इस कदर कि रग-रग में पूर्वजों से मिलती जुलती जिनेटिक समानता ढूंढ़ी जा सकती है.

स्कूल के दिन कोई कैसे भूल सकता है. यादें तारी हो ही जाती हैं. प्रासंगिक बात ये है कि मेरी एक टीचर जिनका नाम दुर्गावती है, वो दलित हैं. मैं ब्राह्मण होने के बावजूद उनके चरण स्पर्श करता था. जब वो पढ़ाती थी तो उनके आर्ट्स आॅफ टीचिंग से कोई उन्हें ब्राह्मण कहने पर गुरेज नहीं कर सकता. जब मै उनको प्रणाम करता तो वो मुझे रोकती और कहती- अरे पंडितजी क्यों धर्म संकट में डाल रहे हैं.

इस वाकये को फिर से बताने के पीछे कोई सफाई नहीं देनी है मुझे. ना ही खुद के संस्कार को शीर्ष पर रखने की कवायद कर रहा हूं. मेरे पिताजी संस्कृत के लेक्चरर हैं और उनका कहना है कि जिंदगी में सबसे पहले अपनी समझ का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए. नैतिकता को ताक पर रख आप कोई काम नहीं कर सकते. अनुशासनहीन लोग इतिहास नहीं रचते. यहां नैतिकता का अभिप्राय नियमों की उस व्याख्या से है जहां हमारा अंतःकरण उचित और अनुचित का बोध कराती है.

मुझे लगता है कि इन लाइनों में बहुत सारी बातें आधुनिक भारतीय समाज को सीखने की जरूरत है.

जिस वेद को बगैर पढें ही उसके खिलाफ अनाप-शनाप बातें होती है, उसकी एक लाइन कहती है कि अगर आप दलित घर में पैदा होकर भी अध्ययन में कार्यकुशल बनते हैं तो आप ब्राह्मण होंगे.

आज भी भारत में दलितों और अन्य वर्गों के लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती. आपको क्या लगता है कि लोकतंत्र बन जाने से व्यवस्थाएं पूरी तरह से सही हो गई है. ये अंग्रेजियत से कम नहीं है कि हमें हिंदू बनाम मुसलमान में लड़वाया जा रहा है. सवर्ण बनाम दलित में बांटा जाता है.

अंग्रेजों ने फूट डालो और राज्य करो(devide and rule) की नीति चलाई थी और आज किसी एक पक्ष के लिए आरक्षण और दलित विशेषाधिकार को परंपरागत बनाने की कोशिश हो रही है.

दलितों क्या तुम इतने नाकारे हो कि तुम आरक्षण के बिना शीर्ष पर नहीं पहुंच सकते और सवर्णों तुम इतने सबल नहीं कि दलितों के उत्थान के लिए कुछ मदद कर सको. ये आरक्षण और विशेषाधिकार तुम्हें हमेशा अदना बताते रहेंगे.

मै लिखते वक्त स्वयं का भी पक्ष नहीं लेता. मुझे लगता है कि इस लेख से हमारा सामाजिक सौहार्द और मजबूत होगा. इस देश में एक ऐसे साम्यवाद की दरकार है जो सामाजिक समानता का आदर्श मिसाल प्रस्तुत करे.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

2 thoughts on “तब मै 7 साल का था

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