मैंने अपने इस बहुत कम समय के अनुभव में पाया है कि लेखन के लिए समर्पित लोगों की बहुत कमी हैं. बहुत बड़े लेखक भी फेम पाने की खातिर लिख रहे हैं. उनको पत्रकारिता से इश्क नहीं है. इसमें अपवाद भी हो सकता है क्योंकि बहुत सारे लेखक सतही और पत्रकारिता के खेतिहर दावेदार जरूर होंगे.
भाषा प्रवाह को बनाए रखना लेखक और पत्रकार के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है. पत्रकारीय कसौटियों को पूरा करने के लिए कामचोरी और लेखकीय अभिमान को भूलना सबसे प्राथमिक माना जाता है.
वर्तमान लेखक कलम की ताकत को समझते नहीं और बार-बार अपनी स्थिति और खुद को कोसते नजर आते हैं. दुनिया में बहुत सारी लड़ाईयां कलम से लड़ी गई है. आज भी वो सतही परंपरा बरकरार है और आगे भी इसे जारी रखना होगा. हरिवंशराय बच्चन ने तो कलम के हिम्मतवर होने की बात की कविताई कुछ ऐसे किया था;
कलम से ही मार सकता हूं तुझे मै,
कलम का मारा कभी बचता नहीं.
बदलाव लाने की प्रक्रिया में लेखन ने समय-समय पर घटनाक्रमों का साथ दिया है और इस बात को साबित करने की कोशिश की है कि समकालीन, अतीत की या फिर आने वाले समय में उत्परिवर्तन का धरातल गढ़ने में कलम का ही हाथ होगा.
देश के कलमकारों! तुम जहां कहीं भी हो, कविता लिख रहे हो. पत्रकार हो या संगीतकार. अपनी धड़कन की अनुगूंज को सुनो और इस बात का निर्धारण करो. कि हर दिन समाज और देश को बदलाव के लिए प्रेरित करने का काम करोगे. हर रोज अपने सामर्थ्य के हिसाब से राष्ट्रनिर्माण के बीज बोओगे.
जिस दिन हमने अपनी कमर समग्रता से कस ली. उसी वक्त बदलाव मुनासिब होगा. लेखक को समय, काल, परिस्थिति के हिसाब से लेखन करने की जरूरत है. हमारे लेखन से समाज सुलगे ना बल्कि हमारे लेखन से सामाजिक सौहार्द और प्रेम का ज्वार हमेशा उछलता रहे.
पत्रकार या लेखक जिस वक्त किसी का प्रशंसक बन जाता है, किसी प्रभाव में जीने लगता है. उसी समय उसके ऊपर लेखकीय क्षति का धब्बा लगने लगता है.
सटीक, प्रामाणिक और ईमानदार रहिए. जय कलमकार!
#ओजस