पीएम मोदी लाल किले की प्राचीर से अपनी पार्टी के ब्रांड अंबेसडर के तौर पर ताल ठोक रहे थे, एक राजनीतिक पार्टी होने के नाते वे अपना दायित्व बखूबी निभा रहे थे तो जन माध्यमों(मीडिया) को उसी के समांतर व्यापक जन असंतोष को दिखाना चाहिए था. अफसोस पत्रकारिता; राजनीति की वाहवाही करने में लगी रही.
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