17 अगस्त की डायरी से

अटलजी आज पंचतत्व में विलीन हो गए लेकिन जो स्नेह लोगों के दिलों में उनके लिए बरकरार है, वो कभी ख़त्म नहीं होने वाला. उनकी कविताएं आशावादोन्मुखी थी. आने वाली तमाम पीढ़ियों को उनसे प्रेरणाएं लेते रहना चाहिए.

राजनेता तो मर जाया करते हैं लेकिन लेखक और कवि मरने के बाद भी जिंदा रहते हैं. जिस प्रकार चाचा नेहरू एक लेखक के तौर पर याद रखे जाते हैं. ठीक उसी तरह अटलजी भी कवि के रूप में याद किए जाते रहेंगे.

प्लस प्वाइंट ये है कि वाणी से जो सम्मोहन बतौर राजनीतिज्ञ अटलजी फैला देते थें. ऐसे बहुत कम लोग भारतीय परिवेश में दिखाई देते हैं. उनके ओजस्वी भाषण का थोड़ा बहुत बिंब Dr. Kumar Vishwas में दिखाई पड़ता है और ये मेरा व्यक्तिगत मत है.

शब्दों के प्रवाहमय धारा का विकेंद्रीकरण अगर अटलजी के बाद कोई कर सकता है तो वो पीएम मोदी नहीं कुमार विश्वास होंगे.

हां, इतना जरूर कहूंगा कि पीएम मोदी भरसक कोशिश करते हैं कि अटलजी की तरह स्पीच दे सके, लेकिन मन की देश के प्रति कोलाहल को काॅपी करना इतना आसान नहीं.

अटलजी की एक पुरानी स्पीच जिसमें उन्होंने अपनी अफगानिस्तान यात्रा के दौरान गजनी जाने की बात कही, और बड़े चिंतातुर होते हुए कहा कि एक लुटेरा बहुत से लुटेरों को बटोरकरकर सोमनाथ के मंदिर तक चला आया.

भाषण की आगामी पंक्तियों की प्रस्तुति देते समय वो उस दौर में भारतीय समाज के बंटने और युद्ध में प्रतिभाग ना करने पर अफसोस जताते हैं.

कई बार आलोचनाएं व्यक्तित्व के उत्थान में कारगर साबित होती हैं. जो मनोविनोद और तार्किकता अटलजी में थी, उस पर किसी कि एक भी आलोचना दो कदम रोकने में असमर्थ जान पड़ती थी. इस वजह से भी अटलजी को आलोचनाओं से फायदा मिलता था.

बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले उन्होंने भीड़ को उकसाते हुए अपने भाषण में कहा था कि नुकीले पत्थरों को समतल करना पड़ेगा, नहीं तो रामलला विराजमान होंगे. इस संदर्भ में भी वे एक ठोस और बेबाक बात कहते हैं कि अयोध्या में राम पैदा हुए, हम मक्का में तो राममंदिर के लिए आंदोलन करने नहीं गए.

लेकिन बाद में India TV के कार्यक्रम आप की अदालत में वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि कार सेवकों को इस तरह ढाँचा नहीं तोड़ना चाहिए था वहां तो खुद रामलला विराजमान थें, जरुरत थी उसके पुनर्निर्माण की.

खैर, ये साम्प्रदायिक बातें अगर मोदी सरकार अगले साल तक सुलझा देती है तो भारतीय समाज में एक तरह की टेंशन ख़त्म हो जाएगी.

जहाँ तक मेरा मानना है कि अटलजी के भाषण ज़्यादा प्रभावशाली होने की वजह राष्ट्र निर्माण की चिंताएं थीं. जिस दुष्यंत कुमार को रही होगी, जिस प्रकार भगतसिंह को रही होंगी.

दिवंगत अटलजी को कोटिशः प्रणाम, और कलमवीर को मुझ जैसे छोटे लेखक की तरफ़ से श्रद्धांजलि-
अटलजी के बहाने
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काल का ये ज्वार-भाटा,
अपने तेवर पर है मुस्कराता.
कविता के शस्त्र से लड़ने वाले योद्धा को गिरा पाएगा!
राजधर्म के जड़ को कैसे उखाड़ पाएगा.

असमर्थ है मृत्यु महारत्न को ले जाने में,
इस चमन में गुलजार हो चुके भारत योद्धा को.
आखिर कैसे रोक पाएगा,
राष्ट्रभक्ति की बहती हुई धारा को.

शाश्वत रहेगा, गुंजायमान होगा!
मुखारबिंद से बार-बार फूटेगा भाषानाद;
ध्वनियां आसमान में उमड़-घुमड़ विचरेगा.

जब तक सिंधु में उठता रहेगा ज्वार,
नई रार ठानने को निकलते रहेंगे अटलजी!
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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