भारत-पाक विभाजन के समय कुलदीप नैय्यर सियालकोट पाकिस्तान से भारत चले आये थे. एक संगोष्ठी के दौरान उन्होंने बताया था कि किस तरह उन्हें भारत आना पड़ा. उनके अजीज दोस्त जो मुसलमान थें और उनके सहपाठी थे, उनसे छूटते गए. विभाजन के दौरान हुई हिंसा और विस्थापन के दौरान तकरीबन 10 लाख लोग मर कट गए. उनके भाषणों में इस बात की चिंता दिखाई देती थी.
आबो-हवा में नफरतों का जो पारावार आजकल चढ़ता दिखाई दे रहा है. धर्मगत असमानताएं इस समय की सबसे बड़ी अलोकतांत्रिक गतिविधि है, इसे समझना होगा. इस बीच कुलदीप नैय्यर की अमन मोमबत्तियां सौहार्द का ताना बाना बुनने का काम करती हैं. लाखों लोग पाकिस्तान और हिंदुस्तान से मोमबत्तियां लाकर 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को सीमा पर लोकगीतों को गाते हैं. इसके मार्गदर्शक स्वयं कुलदीप नैय्यर जी ही थे.
नैय्यरजी का कहना था कि जिस वक़्त लाखों भारतीय लोगों को पाकिस्तान के खिलाफ उकसाने और इसी तादात में पाकिस्तानी में भारत के लोगों के खिलाफ द्वेष फैलाने का काम किया जाता हो, उस समयकाल में अमन की मोमबत्तियां लाखों बिछड़े लोगों के बीच एक गांठ फिर से बांध रही है.
आपको बता दें कि वयो-वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का 95 साल की उम्र में निधन हो गया. आदरणीय कुलदीप नैयर की पत्रकारिता सरकार और समाज को आइना दिखाती रही.
वे धारा के खिलाफ निष्पक्ष रहने के साथ ही भारत के इकलौते पत्रकार हैं, जिन्हें इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तार किया गया था. वे सच्चे अर्थों में पत्रकारीय मूल्यों के अन्वेषक थे. आदरणीय कुलदीप नैय्यर आज हमारे बीच भले नहीं हैं, लेकिन उनके वैचारिक उत्परिवर्तन से बहुत कुछ सुधारा जा सकता है.
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