बदलाव की उम्मीद के साथ

मुझे नहीं लगता कि आधुनिक भारत को वसुधैव कुटुम्बकम् पर दहाड़ने और दुनिया को गले लगाने का हक मिलते रहना चाहिए. आखिर क्या वजह है कि आजादी के सात दशक बाद भी यहां समता और सौहार्द का सृजन नहीं हो सका. ये जो माओ हैं, नक्सली हैं और उग्रवादी हैं. इनका भरोसा सरकार नहीं जीत सकी और ये आतातायी ही बने रहे. कहीं ना कहीं कोई लिंकेज तो रही होगी.

इसके अलावा भी जो भारत बचता है, वहां पर बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं लोग. पिछले चार सालों में ही देख लीजिए. कितना बदल गया है भारत. छोटे शहरों को सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था से क्यों नहीं जोड़ा जाता. नागरिक जीवन में कितना सुधार आ गया है. वैश्विक स्तर पर भारत ने क्या नहीं गंवाया.अमेरिका और रूस ने विश्व व्यापार संघ में भारत की शिकायत क्यों की. न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप में भारत शामिल क्यों नहीं हो सका.

नोटबंदी के दौरान स्विस एकाउंटों में करप्ट कांग्रेसियों का एकाउंट सीज क्यों नहीं हुआ और भारत में १५० लोग कतारों में जान गंवा बैठे. पेटीएम का प्रचार पीएम मोदी ने किया, जिसे चाइनीज़ कंपनी अलीबाबा चलाती है. अभी हाल ही में लद्दाख में चीनी सैनिकों ने २०० मी कब्जा कर लिया. सवाल बहुत सारे हैं लेकिन माओ किसी यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर नहीं होते.

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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