आज ट्विंग्ज टेक. में पहला दिन था. ट्विंग्ज की आॅफिस में जब पहुंचा तो सुधीर सर के अलावा किसी और से मुखातिब नहीं हुआ था. लेकिन धीरे-धीरे अजनबी चेहरे अपने होते गए. योगेश सर ने कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम का सारा काम बताया, तो पहला परिचय उन्हीं से हुआ. ट्विंग्ज में मै पहला हिंदी एडिटर हूं और इसी के साथ जिम्मेदारियां ज्यादा है. इससे पहले इसकी सभी वेबसाइट्स पर इंग्लिश कंटेंट ही जाते थे. योगेंश सर भी इंग्लिश एडिटोरियल में ही हैं. दूसरा परिचय हुआ शैलेंद्रजी से, वे भी इंग्लिश कंटेंट राइटर हैं. उपासना मैम से आते वक़्त मुलाकात हुई.
आज जब आॅफिस के लिए रूम से निकला तो एक सुकून भरा नजारा देखने को मिला. हौज खास से पहले एक लड़की अपने मां और पिताजी को दिल्ली घुमाने लाई रही होगी, ऐसा उनके आपस में बातचीत करने से समझ में आ रहा था. मां के चेहरे पर दिल्ली को पहली बार देखने का उत्साह दर्शनीय था. वो सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते समय अपनी बेटी को जैसे पकड़ रही थी, सहारा पा रही थी और साथ ही आनंदमग्न हो रही थी, वो देखते बन रहा था. इस बीच मैं वहां पहुंचा जहां वो लड़की बदस्तूर अपनी माँ को सहारा दिए जा रही थी. उसके हाथ में दो बैग थे, उसने अपनी माँ के हाथ का बैग अपने दूसरे हाथ में लिया और एक छोटा बैग अपनी माँ को दे दिया. मैं उधर ही देखे जा रहा था. उसने बिना कोई हेल्प मांगे ही अपना एक बैग मुझे थमा दिया और ऐसा मुंह बनाया कि मैं मना भी नहीं कर सका.
अब मैजेंटा लाइन से लेकर हौज खास प्लेटफार्म तक उसने एक बार भी अपना बैग मुझसे वापस नहीं मांगा. जब मेट्रो के अंदर जाकर अपनी माँ और पिताजी जी के लिए सीनियर सिटीज़न वाली सीट सुनिश्चित करवा लिया तब शायद उसे अपने बैग का ख्याल आया और उसने मेरी तरफ मुस्कराते हुए देखा. मैं अब भी गंभीरता से उसकी तरफ देख रहा था. उसने कहा, आप नाराज़ हो गए क्या? मैंने कहा नहीं, और मैंने बिना रुके उसका बैग उसे वापस कर दिया.
#ओजस